बस्तर के नक्सल क्षेत्र की महिलाएं मशरूम उत्पादन कर बनेंगी आत्मनिर्भर

जगदलपुर: मशरूम की खेती इन दिनों हर क्षेत्र में अधिक हो रही है. चूंकि ये पौष्टिक होता है, इसलिए इसकी अधिक से अधिक खेती पर ध्यान दिया जाता है. छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में भी इन दिनों मशरूम की खेती पर पूरा फोकस (Producing mushrooms in ​​Bastar) किया जा रहा है. इतना ही नहीं इसके खेती के लिए लोगों को गांव-गांव जाकर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है, ताकि लोग अधिक से अधिक मशरूम की खेत कर अपना व्यवसाय शुरू कर सकें.

मशरूम एक फंगस प्रजाति

दरअसल, मशरूम एक फंगस प्रजाति है. जिसकी बीज को पैरा में भिगोकर 20 से 25 डिग्री के बंद कमरे में उगाया जाता है. जिसके बाद थैलों में रखी पैरा से मशरूम उगने लगते है. यह फूल की तरह तैयार होते है. 25 से 30 दिनों में जब मशरूम पूरी तरह से उग जाते हैं, तो इसके बाद इसे थैलों से बाहर निकाला जाता है और इसकी पैकेजिंग कर इसे बेच दिया जाता है. मशरूम को तैयार करने के लिए इसमें पूरी तरह से जैविक खाद का ही इस्तेमाल किया जाता है.

घर-घर महिलाओं को दिया जा रहा प्रशिक्षण

कृषि वैज्ञानिक रितिका समरथ अधिक से अधिक इन दिनों बस्तर के नक्सल प्रभावित ग्रामीण क्षेत्रों (Naxal area Women ) में पहुंच महिलाओं को मशरूम खेती के लिए प्रशिक्षण दे रही है. ताकि बाहर से आने वाले लोग बस्तर के मशरूम का स्वाद चख सकें.

सैलानी भी चख सकेंगे मशरूम का स्वाद

आश्टर मशरूम बस्तर की काफी लोकप्रिय मशरूम है और कम लागत में इसका उत्पादन किया जा सकता है. यही कारण है कि ग्रामीण महिलाएं बढ़-चढ़कर इस प्रशिक्षण में हिस्सा ले रही हैं. कृषि विज्ञान केंद्र और जिला प्रशासन बस्तर के ग्रामीण महिलाओं को मशरूम उत्पादन के लिए पिछले 6 दिनों से प्रशिक्षित कर रहे हैं. इसके उत्पादन से न सिर्फ ग्रामीण महिलाओं को एक अच्छी आय ( Women will become self sufficient by producing mushrooms ) मिलेगी. इससे बस्तर में घूमने आने वाले सैलानी होटलों और ढाबों में देसी मशरूम का स्वाद चख सकेंगे.

महिलाओं को मिलेगा आर्थिक लाभ

प्रशिक्षण लेने आए ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि अशिक्षित और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में होने की वजह से उन्हें कहीं काम नहीं मिल पाता. इससे उनको घर चलाने में काफी परेशानी होती है. ऐसे में मशरूम की खेती करने से उन्हें आर्थिक तौर पर राहत मिलेगी.

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