नई दिल्ली: कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variant) को लेकर सारी दुनिया परेशान है. लेकिन दुनिया भर में ओमिक्रॉन को लेकर जो स्टडी हुई हैं, उनके मुताबिक ओमिक्रॉन कोरोना को खत्म करने की सीढ़ी बनने वाला है.
दुनिया भर के विशेषज्ञों का मानना है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट भले ही संक्रामक ज्यादा हो लेकिन इससे नुकसान काफी कम होता है. वहीं ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित होने पर एंटीबॉडी भी कई गुना ज्यादा बन रही हैं. ऐसे में जिस तरह दुनिया में स्पेनिश फ्लू जैसी महामारी अब साधारण बीमारी बन गई है. आने वाले वक्त में कोरोना भी ऐसे ही कमज़ोर हो जाएगा.
जिंदगी का न्यू नॉर्मल बन जाएगा ओमिक्रॉन!
मौसम बदलता है तो आम तौर पर आपके पास लोग खांसते और छींकते जरूर नजर आते होंगे. ये बात आपको भी मालूम है कि हर बार खांसना या छींकना कोरोना नहीं होता. हर बार गले में खराश में जानलेवा नहीं मामूली परेशानी भी हो सकती है. दुनिया में तेजी के साथ फैल रहे ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variant) की बातें आजकल हर जगह हो रही हैं. कहा जा रहा है कि जिस तरह सर्दी और खांसी आपको नहीं डराती, उसी तरह ओमिक्रॉन वेरिएंट से भी डरने की जरूरत नहीं है.
दुनिया भर में हो रही स्टडी के मुताबिक ओमिक्रॉन वेरिएंट से घबराने की जरूरत नहीं क्योंकि ये डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) जैसा जानलेवा नहीं है. असल में ओमिक्रॉन (Omicron) को दुनिया भर के कई वैज्ञानिक महामारी के अंत की शुरूआत का पहला चरण मान रहे हैं. इसके पीछे कुछ ठोस वैज्ञानिक कारण भी हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक जब किसी देश मे 60 से 70% लोगों में इन्फेक्शन या टीके से एंटीबाडीज आ जाती है तो नया mutated वायरस अपने आप को कमजोर और शरीर के लिए कम घातक बनाने लगता है. हालांकि यह फैलता तेजी से है ताकि वो ज्यादा से ज्यादा इंसानों के शरीर मे अपना घर बना ले.
डेल्टा के मुकाबले कम खतरनाक
विशेषज्ञों के मुताबिक 70 से 80% लोगों को संक्रमित करने के बाद वायरस में Weak Mutation होते हैं, जिससे weak strain बन जाते हैं. ओमिक्रॉन (Omicron Variant) भी एक ऐसा ही वेरिएंट है. वहीं डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) ओमिक्रॉन के मुकाबले कम संक्रामक लेकिन अधिक नुकसान पहुंचाने वाला था. दुनिया भर से आ रही रिपोर्ट भी बता रही हैं कि ओमिक्रॉन से मौत की संख्या डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले काफी कम है. यानी वैक्सीनेशन और इंफेक्शन से हर्ड इम्युनिटी बढ़ेगी और महामारी अंत की तरफ बढ़ेगी.
कोरोना के इस Omicron Varient को महामारी के अंत की पहली सीढ़ी के अलावा बूस्टर वेरिएंट भी कहा जा रहा है. दक्षिण अफ्रीका जहां से ओमिक्रॉन की शुरुआत हुई, वहां हुई एक स्टडी के मुताबिक ओमिक्रॉन संक्रमितों में कोरोना वैक्सीन के मुकाबले 14 गुना ज्यादा एंटीबॉडी मिली हैं. उनमें डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले नुकसान कम है. हालांकि इसका यह मतलब बिल्कुल भी नही है कि लोग वैक्सीन ना लगवाएं और जानबूझकर कर Omicron से संक्रमित हो जाएं.
कुल मिलाकर दुनिया भर से आ रही रिपोर्ट और विशेषज्ञों की राय के मुताबिक ओमिक्रॉन से उतना घबराने की जरूरत नहीं, जितना खौफ डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) से था. फिर भी ओमिक्रॉन से बचाव के लिए सावधानी बेहद ज़रूरी है. दो गज की दूरी और मास्क बेहद जरूरी है.
कम जानलेवा है ओमिक्रॉन वेरिएंट
अब आपको कोरोना के OMICRON और DELTA वेरिएंट के अंतर को बताते हैं. इससे आपको ये समझ में और बेहतर तरीके से आएगा कि ऐसा क्यों कहा जा रहा है कि OMICRON से ही कोरोना का खात्मा होगा. दोनों वेरिएंट के फैलने की रफ्तार की बात करें तो डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले OMICRON के फैलने की रफ्तार 70 गुना ज्यादा है जबकि डेल्टा वेरिएंट के फैलने की रफ्तार फ्लू के मुकाबले 10 गुना ज्यादा थी.
कोरोना का असर फेफड़े पर काफी ज्यादा होता है. OMICRON की बात करें तो इसका असर डेल्टा के मुकाबले 10 गुना कम है. OMICRON का फेफड़े पर असर भी 10 गुना कम है. आपको याद होगा ब्लैक फंगस जैसी जानलेवा बीमारी हुई थी और हजारों लोगों की मौत सांस सही से नहीं लेने की वजह से हो गई थी.
अब बात करते हैं दोनों वेरिएंट के वायरस के काम करने के तरीके की तो OMICRON जब शरीर में प्रवेश करता है तो वो श्वासनली में खुद को विकसित करता है. मतलब वो श्वासनली में ही रुक जाता है और फेफड़े तक पहुंचते-पहुंचते बेहद कमजोर या बेअसर हो चुका होता है. जबकि डेल्टा (Delta Variant) श्वासनली में रुकने के बजाय सीधे फेफड़े पर अटैक करता है इसीलिए ये ज्यादा जानलेवा है.
डेल्टा वेरिएंट करता है फेफड़ों पर अटैक
एंटीबॉडी के लिहाज से देखें तो दोनों वेरिएंट के असर अलग-अलग है. दरअसल OMICRON जब श्वासनली में रुकता है तो हमारे श्वासनली की एंटीबॉडी जो शरीर में मौजूद है खुद ब खुद उसे कमजोर कर देता है. ये सबकुछ नेचुरल तरीके से होता है जबकि डेल्टा में ऐसा नहीं होता है क्योंकि इस वेरिएंट का वायरस श्वासनली में रुकता ही नहीं सीधे फेफड़े पर असर करता है.
OMICRON में सबसे बड़ी राहत की बात ये है कि इसमें मृत्यु दर बेहद कम है. जो लोग पहले से बहुत बीमार है, उनके लिए थोड़ी चिंता की बात है. डेल्टा वेरिएंट बेहद खतरनाक था और इसमें मृत्यु दर काफी ज्यादा है. आपको याद होगा इस साल अप्रैल और मई में कैसे डेल्टा वैरिएंट ने कोहराम मचाया था
अब आखिर में लक्षण की बात करें OMICRON में गले में चुभन, बंद नाक, पीठ के निचले हिस्से में दर्द जैसे लक्षण है जबकि डेल्टा में सांस लेने में तकलीफ लेने सहित कई लक्षण हैं, जिससे हम सब वाकिफ है.
कोरोना के खात्मे की पहली सीढ़ी है ओमिक्रॉन
अब हम आपको बताते हैं आखिरकार क्यों कहा जा रहा है ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variant)कोरोना के खात्मे की पहली सीढ़ी है और चिकन पॉक्स और इन्फ्लुएंजा की तरह कोरोना भी एक साधारण बीमारी में तब्दील हो जाएगी. इसकी सबसे बड़ी वजह है हर्ड इम्युनिटी, जिसने कई सालों पहले खतरनाक रही महामारियों के असर को बहुत कम कर दिया.
आज से 100 साल पहले स्पेनिश फ्लू ने भी काफी नुकसान किया था. दो लहरों के बाद स्पेनिश फ्लू में म्यूटेशन हुआ, जिससे इसका असर भी काफी कम हो गया था. आज ये एक साधारण बीमारी है.
कोरोना वायरस लगभग 1 साल और 11 महीने पहले विश्व मे महामारी घोषित हुआ था. तब से लेकर आज तक यानि 23 महीने में वायरस में कई बदलाव हुए हैं. कुछ बदलाव यानी mutation डेल्टा वैरिएंट जैसे भी थे. जो फैलते भी तेज थे और नुकसान भी तेजी से करते थे. आज दुनिया में जो वेरिएंट सबसे तेज फैल रहा है, वो है ओमिक्रॉन. लेकिन ओेमिक्रॉन से होने वाली मौत का आंकड़ा बेहद कम है.
ये बीमारियां भी बन चुकी न्यू नॉर्मल
क्या ऐसा हो सकता है कि कोरोना भी फ्लू जैसी मामूली बीमारी बन जाए. इस पर एक्सपर्ट का कहना है दुनिया में कई ऐसी बीमारियां आ चुकी थीं जो पहले महामारी थीं लेकिन अब उनका आसानी से इलाज संभव है.
इन्फ्लूएंजा और चिकन पॉक्स पहले खतरनाक बीमारियां थीं. अब इन्फ्लूएंजा एक-दो दिन में ठीक हो जाता है. चिकन पॉक्स अब दोबारा नहीं होता. 50 साल पहले बीमारियों से हर्ड इम्युनिटी मिली. ये बीमारियां खत्म तो नहीं हुईं लेकिन काफी कमजोर जरूर हो गई.
हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि अभी कोरोना को विश्व के सभी देशों में साधारण खांसी जुकाम बनने में एक से डेढ़ साल तक लग सकते हैं. Omicron अभी इस सीढ़ी का पहला चरण है. ऐसे में जब तक कोरोना वायरस साधारण खांसी जुकाम नही बन जाता है, तब तक घर से बाहर सार्वजनिक स्थानों पर, दफ्तर में मास्क लगाकर ही रहना है और वैक्सीनेशन भी बहुत जरूरी है.
वैक्सीनेशन कराने में न करें लापरवाही
बात अगर ओमीक्रोन वेरिएंट की करें तो कई म्यूटेशंस के साथ शरीर की पहली रक्षा पंक्ति यानी एंडीबॉडी को हराने में तो सक्षम हैं. यह शरीर की दूसरी रक्षा पंक्ति (टी-सेल्स) से जीत नहीं पाता है. ये टी-सेल्स न केवल वेरिएंट की पहचान करने बल्कि उसे बेअसर करने में भी बेहद प्रभावी हैं. उन यूनिवर्सिटी की स्टडी में पता चला है कि जो मरीज कोविड से ठीक हुए या वैक्सीन लगवाई उनमें 70-80 फीसदी टी सेल्स ने ओमिक्रॉन के खिलाफ काम किया है.
यही वजह है देश के तमाम मेडिकल एक्सपटर्स इस तरफ इशारा कर रहे कि ओमिक्रॉन (Omicron Variant) संक्रमितों की संख्या भले ही बढ़ रही हो लेकिन इससे परेशान होने या घबराने की जरूरत नहीं है. एक्सपर्ट ने ये भी कहा है कोरोना से मुकाबले के लिए वैक्सीनेशन सबसे ज़रूरी है.
कुल मिलाकर वैक्सीनेशन की रफ्तार तेज होने और कुछ दिनों तक कोविड प्रोटोकॉल का ठीक ढंग से पालन करने से कोरोना वायरस वैसे ही कमज़ोर हो सकता है. जैसे इससे पहले खतरनाक महामारियों का इलाज अब बेहद आसान हो गया है.