सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया और सरकार को किसी अन्य विकल्प पर विचार करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आलोचना करते हुए कहा कि राजनीतिक पार्टियों को हो रही फंडिंग की जानकारी मिलना बेहद जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले पर सुनवाई की.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जनता को यह जानने का हक है कि आखिर राजनीतिक दलों के पास पैसे कहां से आते हैं. बेंच ने कहा कि सरकार को चुनावी प्रक्रिया में काला धन रोकने के लिए कुछ और तरीकों पर भी विचार करना चाहिए.
इस तरह अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था को कायम रखा है, लेकिन उसमें गोपनीयता खत्म करने को कहा है. संवैधानिक पीठ का फैसला सर्वसम्मति से आया है, लेकिन दो फैसले लिख गए हैं. इसकी वजह यह है कि बेंच में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना के विचार थोड़े अलग थे. इसलिए उन्होंने अलग से फैसले को लिखा है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी प्रक्रिया में राजनीतिक दल अहम पक्ष हैं. उनकी फंडिंग कैसे होती है और कहां से हो रही है. इसकी जानकारी लोगों को मिलनी ही चाहिए.
क्या है योजना?
इस योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया गया था. इसके मुताबिक, चुनावी बॉण्ड को भारत के किसी भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई की ओर से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड के पात्र हैं. शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों. चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा.