आज सुप्रीम कोर्ट नागरिकता संशोधन नियम (CAA) से जुड़ी कई याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. CAA प्रावधान 2019 में पारित होने के बाद से इस मामले पर शीर्ष अदालत में 230 से ज्यादा याचिकाएं v की गई हैं.
हाल ही में केंद्र सरकार ने CAA को लागू कर दिया है. इसके बाद विपक्ष और अन्य कई संगठन सरकार पर हमलावर हैं. उनका कहना है यह कानून मुसलमानों के साथ पक्षपातपूर्ण है. यह संविधान के मूल सिद्धातों के खिलाफ है. सीजेआई की अध्यक्षता में जस्टिस जेबी पारदीवाला औऱ मनोज मिश्रा की बेंच के सामने इन याचिकाओं पर सुनवाई की अपील की गई थी.
गृह मंत्रालय ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के नियमों के कार्यान्वयन को अधिसूचित किया था. यह कानून अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए शरणार्थियों के लिए इन देशों के वैध भारतीय वीजा या पासपोर्ट के बिना भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है.
बता दें कि नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 में ही संसद में पास हो गया था औऱ कानून भी बन गया था. इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए वहां के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को फास्ट ट्रैक तरीके से नागरिकता दी जाएगी. सरकार ने इसके लिए पोर्टल भी शुरू कर दिया है.
इस कानुन के तहत गैरमुस्लिम हिंदू, सिख, बौद्ध, पारसी जैन और ईसाइयो को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है. सीएए लागू होने के एक दिन बाद ही केरल का राजनीतिक दल IUML सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. याचिका में कहा गया था कि इस कानून पर रोक लगा देनी चाहिए. इसमें मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही ना करने भी मांग की गई थी. IUML के अलावा डीवाईएफआई, कांग्रेस के देवव्रत साइका, असदुद्दीन ओवैसी , अब्दुल खालिक ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर की थी.
2019 में भी IUML ने सीएए को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में इस कानून को भेदभाव पूर्ण बताया गया था. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं पर ही सवाल उठा दिया. सीएए के खिलाफ 237 याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें 4 अंतरिम आवेदन हैं जिनमें नियमों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने की मांग की गई है. सीजेआई ने कहा था, मंगलवार को 190 से ज्यादा केसों पर सुनवाई होगी.