मनुष्य की जिंदगी को सरस बनानेऔर दुख-दर्द को दूर करने के लिए मानव समुदाय में पर्वों-त्योहारों काअनादि काल से प्रचलन है। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे अनेक पर्वऔर त्योहार है, जो लगभग वर्ष भर मनाए जाते हैं। इसलिए छत्तीसगढ़ को पर्वों का गढ़ भी कहा जाता है। यहां का एक महापर्व है छेरछेरा । पूस माह की पूर्णिमा को इसे धूमधाम से मनाया जाता है। इस समय तक धान की नई फसल कटकर किसानों की कोठी में भर चुकी होती है।जिसका दान वे करते हैं।
दान का बीज बोता है छेरछेरा
छेरछेरा एक ऐसा पर्व है जो कि बालपन से बच्चों के हृदय में दया-प्रेम,दान-पुण्य का बीज बो देता है।इस पर्व में छोटे-बड़े अमीर-गरीब घूम घूम कर सुबह से घर घर जाकर दान मांगते हैं।यह एक ऐसा पर्व है जिसमें द्वार पर आए मांगने वाले को दुत्कारा नहीं जाता।मांगने वाले को भिखारी की तरह नहीं बल्कि साधु संत की तरह और दान देने वाली गृहलक्ष्मी को समृद्धि देने वाली “शाकंभरी देवी” माना जाता है।द्वार पर दान मांगनेआए लोगों को यथाशक्ति दान देकर विदा किया जाता है।दुख दरिद्रता दूर रखने की कामना की जाती है।इस पर्व की एक रोचक बात यह भी है कि इसमें कोई एक अकेला दान मांगने नहीं जाता बल्कि दल बनाकर मांगने वालों की टोली निकलती है।
टोली के सदस्य” छेरिक छेरा छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा।अरन बरन कोदो दरन जभे देबे तभे टरन”की टेर लगाते हाथ में टोकनी लिए गांव भर दान मांगते घुमते हैं।
छत्तीसगढ़ में पहली बार छेरछेरा की छुट्टी
छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार इस महापर्व पर शासकीय अवकाश देने की घोषणा की गई है ।वर्ष 2022 में छत्तीसगढ़ वासियों को पहली बार छेरछेरा पर्व के अवकाश काआनंद मिलेगा। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी के इस निर्णय से नई पीढ़ी सहित समाज के ऐसे बड़े वर्ग को जो कि अपने रीति-रिवाजों से दूर होते जा रहे हैं उन्हें अपनी संस्कृति-संस्कार और परंपराओं को जानने का उम्दाअवसर मिलेगा।यह सर्व विदित है कि संस्कृति संस्कारों से दूर होना किसी एक परिवार ,व्यक्ति का ही नहीं बल्कि समूचे मानव समुदाय,देशऔर प्रदेश के लिए नुकसानदायक है।इस बात को यूं कहा जा सकता है कि-“जिस गांव में पानी नहीं गिरता,वहां की फसलें खराब हो जाती हैं,और जहां परंपराओं का मान नहीं होता, वहां की नस्लें खराब हो जाती है।”
भीख ले के भीख देंगे जग को जीत लेंगे
छेरछेरा का महापर्वअहंकार को त्याग कर दान मांगने की सीख भी देता है।इस दिनअनेक युवाओं की टोली हाथ में डंडा लिए उसेआपस में टकराते हुए नाचते गाते छेरछेरा मांगती है।यह पर्व हमारे वेद पुराण में लिखें इस बात का भी स्मरण कराता है कि धन-दौलत की तीन गति होती “दान-भोगऔर नाश”। जिसमें धनदान को सबसे सर्वश्रेष्ठ गति का दर्जा प्राप्त है। इसी गति और दान की महिमा का बखान करते हुए छेरछेरा के पर्व पर कहा जाता है -भीख लेकर भीख देंगे तो जग को जीत लेगें। साथ ही साथ यह पर्व अहंकारियों की दुर्दशा पर भी प्रकाश डालते हुए बताता है कि –अंहकार में तीन गए,धन-वैभवऔर वंश,न मानो तो याद करो
रावन-कौरव और कंस।
छेरछेरा पर्व की कथा
छेरछेरा पर्व को मनाने के पीछे एक बड़ी पुरानी कथा प्रचलित है ।जिसकेअनुसार कौशल राज (प्राचीन छत्तीसगढ़) के महाराजा कल्यान साय युद्ध कला सीखने के लिए जहांगीर राजा के राज में गए हुए थे।आठ वर्षों तक युद्ध कला की बारीकियों में दक्ष होने के उपरांत जब वे अपने राज रतनपुर लौटे तो उनके लौटने की खुशी में प्रजाजनों ने बाजा बजाते, नाचते गाते उनका स्वागत किया। ऐसे समय में उनकी महारानी फूलकइना ने प्रजाजनों और जरूरतमंदों के बीच सोना चांदी, रुपया पैसा ,अनाज का दांन दिया ।तब महाराजा ने घोषणा कर दी कि आने वाले समय में प्रतिवर्ष आज के दिन को पर्व की तरह मनाया जाएगा और मिलजुल कर दान भी दिया जावेगा।
शाकंभरी देवी की कथा
छेरछेरा पर्व को मनाने के पीछे एक और प्राचीन कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार भयंकर अकाल की स्थिति निर्मित हुई ।चारोंओर सूखे के कारण उत्पन्न विकट स्थिति से हाहाकार मच गया।भूखे प्यासे जीव जंतु मनुष्य तड़प तड़प कर प्राण त्यागने लगे। तब जगतजननी, पालनहार “शाकंभरी देवी” अवतरित हुई और चारोंओर वर्षा करते फल-फूल, साग- सब्जी,विविध अनाज,तथा जल से लबालब नदी,तालाब ,कुएं उत्पादित कर सृष्टि में विकास संग सुख की गंगा बहा दी। तब से पूस माह की पूर्णिमा के दिन को माता शाकंभरी जयंती के रूप में मनाया जाता है।
तोतले- लड़ाकू बच्चों को कर्रा डाल से आंकने की प्रथा
छेरछेरा पर्व के दिन एक और अजीब सी परंपरा गांव-खेड़े मजरा-टोला में देखने सुनने को मिलती है। इस दिन ऐसे बच्चों को जो कि तोतले- लड़ाकू प्रवृत्ति के होते हैं, उन्हें जंगली पेड़ कर्रा की डगाली कोआग में तपा कर आंकने की प्रथा प्रचलित है। यह कितनाअसरकारी है इसे प्रत्यक्ष देखे बिना कहना कठिन है,किंतु ऐसी मान्यताएं इस बात को जरूर उजागर करती है “छेरछेरा हरता है सबके पीरा”।
दान से विकास के काम
छेरछेरा पर्व के दिन घर घर जाकर मांगने से मिले दान को एकत्रित करके अनेक ग्रामीण अंचलों में उसे विकास के कार्य में लगाया जाता है। ऐसा जनहितैषी पर्व छत्तीसगढ़ राज्य का मान देशभर में बढ़ाता है।तो चलिए इस महापर्व पर संकल्प लें की छेरछेरा में दिल खोल कर दान करेंगे ।
छेरछेरा पर्व में नई पीढ़ी करे रक्तदान
समय बदलने के साथ-साथ मनुष्य की सोच उसकी दशा और दिशा भी बदलती जाती है। इसे देखते हुए नई पीढ़ी के युवाओं को छेरछेरा पर्व पर दान देने की प्रथा को नए स्वरूप में देखना होगा। नई पीढ़ी के युवा साथी छेरछेरा पर्व के दिन रक्तदान करके अभिनव पहल कर सकते हैं। सभी इस बात से अवगत है कि मानव शरीर के अलावा खेत- खलिहान अथवा कल- कारखानों में रक्त उत्पादित नहीं होता,अतः जरूरतमंद मानव शरीर को आवश्यकता अनुरूप रक्त की प्राप्ति हो सके इस हेतु छेरछेरा के दिन रक्तदान देना महापर्व पर एक महान कार्य करने जैसा सराहनीय कदम होगा।ऐसा करने से दान में दिए रक्त से जरूरतमंद इंसान की जान बचेगी और छेरछेरा पर्व का मान भी बढ़ेगा।अंत में विद्वान विंस्टन चर्चिल के इस कथन का उल्लेख करना होगा कि- हमें जो मिलता है उससे हम अपना जीवन चलाते हैं, लेकिन जब हम किसी को कोई चीज दान में देते हैं तो उससे उसका जीवन बनाते हैं।
विजय मिश्रा ‘अमित’
पूर्वअति.महाप्रबंधक(जन.)
छग पावर कम्पनी