सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, आरक्षण कोटे के अंदर कोटे को दी मंजूरी…

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ‘हालांकि आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है. इस सब-कैटेगरी का आधार यह है कि एक बड़े समूह मे से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.’

पंजाब में वाल्मीकि और मजहबी सिख जातियों को अनुसूचित जाति आरक्षण का आधा हिस्सा देने के कानून को 2010 में हाईकोर्ट ने निरस्त किया था. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई. गुरुवार को इस याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला किया. माना जाता है कि एससी/एसटी कैटेगरी में भी कई ऐसी जातियां हैं, जो बहुत ही ज्यादा पिछड़ी हुई हैं. इन जातियों के सशक्तिकरण की सख्त जरूरत है.

फैसला पढ़ते हुए CJI ने कहा कि, ‘वर्गों से अनुसूचित जातियों की पहचान करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मानदंड से ही पता चलता है कि वर्गों के भीतर विविधता है.’ उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 15, 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि उपवर्गीकरण का आधार राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, वह अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता.

किसी एक सब-कैटेगरी को 100% आरक्षण नहीं

जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता, SC/ST के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. उन्होंने कहा कि उप-वर्गीकरण का आधार यह है कि बड़े समूह के एक समूह को ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है. जस्टिस गवई ने फैसले में कहा कि उप-वर्गीकरण की अनुमति देते समय, राज्य केवल एक उप-वर्ग के लिए 100% आरक्षण नहीं रख सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि उपवर्गीकरण का आधार राज्य के सही आंकड़ों पर आधारित होना चाहिए, इस मामले में राज्य अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकता. आरक्षण के बावजूद निचले तबके के लोगों को अपना पेशा छोड़ने में कठिनाई होती है. जस्टिस बी आर गवई ने सामाजिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर दिए गए बीआर अंबेडकर के भाषण का हवाला दिया. जस्टिस गवई ने कहा कि पिछड़े समुदायों को प्राथमिकता देना राज्य का कर्तव्य है, SC/ST वर्ग के केवल कुछ लोग ही आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं. जमीनी हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि SC/ST के भीतर ऐसी श्रेणियां हैं, जिन्हें सदियों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. उप-वर्गीकरण का आधार यह है कि एक बड़े समूह में से एक ग्रुप को अधिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

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