केंद्र सरकार द्वारा चुनाव आयोग (Election Commission) की सिफारिश पर चुनाव नियमों में किए गए बदलाव के खिलाफ कांग्रेस (Congress) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में चुनाव संचालन नियम 1961 के रूल 93(2)(ए) में संशोधन के खिलाफ याचिका लगाई है. कानून मंत्रालय ने शुक्रवार को इन नियमों में संसोधन के संबंध में आदेश जारी की थी. अब इस मामले में विपक्ष ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दाखिल किया है. जल्द ही इस मामले में सुनवाई भी शुरू हो जाएगी.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया एक्स पर दी है. याचिका दायर करने के बाद कांग्रेस नेता ने एक्स पर लिखा, “निर्वाचनों का संचालन नियम 1961 में हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर की गई है. चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है. इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, इसलिए इसे एकतरफा और सार्वजनिक विचार-विमर्श के बिना इतने महत्वपूर्ण नियम में इतनी निर्लज्जता से संशोधन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.
उस परिस्थिति में तो विशेष रूप से नहीं जब वह संशोधन चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने वाली आवश्यक जानकारी तक सार्वजनिक पहुंच को समाप्त करता है. चुनावी प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा तेजी से कम हो रही है. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा.”
बता दें कि केंद्र सरकार ने सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव नियमों में बदलाव किया है. सरकार का कहना है कि ऐसा करने के पीछे उसका मकसद इनका दुरुपयोग रोकना है. नियम 93 के अनुसार, चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे. संशोधन में दस्तावेजों के बाद इन नियमों में निर्दिष्ट अनुसार जोड़ा गया है.
चुनाव आयोग (ईसी) की सिफारिश पर इलेक्ट्रानिक रिकार्ड का दुरुपयोग रोकने पर केंद्रीय कानून मंत्रालय ने चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2)(ए) संशाधित किया गया है. ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए कागजातों या दस्तावेजों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके. चुनाव से संबंधित सभी दस्तावेज आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होंगे.
इस बदलाव पर चुनाव आयोग का मानना है कि सीसीटीवी फुटेज साझा करने से विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जहां गोपनीयता महत्वपूर्ण है. मतदाताओं की जान भी जोखिम में पड़ सकती है. सभी चुनाव कागजात और दस्तावेज अन्यथा सार्वजनिक निरीक्षण के लिए उपलब्ध हैं.