कोरबा। छत्तीसगढ़ के कोरबा में पाए जाने वाले किंग कोबरा की प्रजाति जानने के लिए डीएनए जांच कराई जाएगी। वैश्विक स्तर पर हाल ही में हुए अध्ययन से पता चला है कि किंग कोबरा की आफियोफैगस हन्ना के साथ ही तीन और प्रजातियां आफियोफैगस कलिंगा, आफियोफैगस साल्वाटाना, आफियोफैगस बंगारस प्रजातियां भी पाई जाती हैं।
कोरबा में मिलने वाले किंग कोबरा के प्रथम दृष्टया आफियोफैगस हन्ना या आफियोफैगस कलिंगा प्रजाति के होने की संभावना है। हालांकि, टेस्ट रिपोर्ट के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि कोरबा का किंग कोबरा चारों प्रजातियों में से कोई एक है या फिर कोई नई प्रजाति है।
साल 2014 में कोरबा जिला के बताती गांव में रहने वाले एक किसान की बाड़ी में किंग कोबरा पहली बार नजर आया। इसके बाद कोरबा के कई अन्य स्थानों पर कोबरा मिलने लगे। साल 2021 में मदनपुर गांव में सबसे लंबा करीब 18 फीट लंबा कोबरा मिला।
नोवा नेचर व अन्य संस्थाओं ने मिलकर इलाके में अब तक 250 से अधिक किंग कोबरा की गणना की है। सर्प मित्र और सर्वे दल के सदस्य जितेंद्र सारथी ने बताया कि कोरबा वन मंडल के साथ सूरजपुर जिले की सरहद तक कोबरा के रहवास के निशान मिले हैं। बताती क्षेत्र के जंगल को कोबरा रहवास के रूप में विकसित किया जा रहा है।
कहां पाई जाती है कौन सी प्रजाति
आफियोफैगस हन्ना: अब तक इसे ही किंग कोबरा की एकमात्र प्रजाति माना जाता रहा है, जो पूर्वी पाकिस्तान उत्तर भारत और उत्तर पूर्व भारत में भी पाया जाता है।
आफियोफैगस कलिंगा: इसे भारत के पश्चिमी घाट में पाई जाने वाली प्रजाति के तौर पर दर्शाया गया है।
आफियोफैगस साल्वाटाना: मलेशिया, फिलिस्तीन और अन्य द्वीप समूह में पाए जाने वाले किंग कोबरा को इस कैटेगरी में रखा गया है।
आफियोफैगस बंगारस: भारत के साथ ही इस प्रजाति के चीन में पाए जाने की भी जानकारी है।
ऐसे सैंपल लिया जाएगा
कोरबा वन मंडलाधिकारी अरविंद पीएम ने बताया कि जांच के लिए वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग रायपुर से अनुमति के लिए पत्र लिखा गया है। इसके बाद डीएनएन के लिए सैंपल लिया जाएगा। मृत सांप के जीवाश्म, केंचुल व मल भी संग्रहित किए जाएंगा।
इनमें से कोई भी एक सैंपल मिलने से डीएनए जांच संभव है। जांच के लिए सैंपल कोशिकीय एवं आण्विक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमवी) हैदराबाद व वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया देहरादून की फारेंसिक लैब में भेजा जाएगा।
एक मिलीग्राम जहर से चली जाती है जान
करैत प्रजाति के सांपों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती है और किंग कोबरा इसे खा जाते हैं। सर्प की संख्या पर नियंत्रण के लिहाज से यह जंगल के लिए बेहद महत्वपूर्ण जीव है। कोबरा कई स्थानों में विलुप्ति के कगार पर भी है।
इसका एक मिलीग्राम जहर किसी व्यक्ति की जान लेने के लिए पर्याप्त है। इससे ज्यादा जहर इंसान के शरीर पर पहुंच जाए, तो अस्पताल में डॉक्टर उसकी जान नहीं बचा पाते।
विष इतना शक्तिशाली कि हाथी को भी मार गिराए
नोवा नेचर संस्था के अध्यक्ष एम सूरज का कहना है कि कोबरा के अनुकूल कोरबा जंगल का वातावरण है। कोबरा 20 से 30 साल तक जीवित रह सकता है। कुछ कोबरा के विष इतना शक्तिशाली होता है कि वह हाथी जैसे बड़े जानवर को भी मार कर गिरा सकता है।
ओडिशा और बस्तर क्षेत्र के पूर्वी घाट में किंग कोबरा की मौजूदगी पाई गई है। कोरबा में इनकी संख्या अच्छी खासी है। इन जगहों पर सर्पदंश यानी सांपों के काटने के मामले भी ज्यादा मिलते हैं।