सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि दृष्टिहीन लोगों को जज बनने से रोका नहीं जा सकता क्योंकि दिव्यांगों के अधिकारों को न्याय व्यवस्था को अधिक समावेसी और सरल बनाना है. सुप्रीम कोर्ट ने एक कानून को रद्द करते हुए कहा कि दृष्टिहीन लोग भी न्यायिक परीक्षा में हिस्सा लेने के हकदार हैं और इस क्षेत्र में अक्षमता प्रतिभा को बाधा नहीं बन सकती.
जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर माहेदवन की बेंच ने कहा कि किसी दिव्यांग व्यक्ति को उसके अधिकारों से वंचित करने का आधार मेडिकल एक्सपर्ट द्वारा किया गया क्लीनिकल असेसमेंट नहीं हो सकता. पीठ ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम की शर्तों में दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन अभ्यार्थियों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर रखने वाले अंश को निरस्त करते हुए कहा कि वे (दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन) भारत में न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति के लिए आवेदन करने के पात्र हैं. पीठ ने फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति महादेवन ने कहा, “मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियम 1994 के नियम 6ए को निरस्त किया जाता है, क्योंकि यह दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति से बाहर रखता है.”
पीठ ने 2016 के दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के अनुसार, दिव्यांग व्यक्तियों की पात्रता का आकलन करते समय उन्हें उचित सुविधाएं दी जानी चाहिए. पीठ ने फैसले में आगे कहा कि वह संवैधानिक व्यवस्था और संस्थागत अक्षमता से निपटता है और इस मामले को सबसे महत्वपूर्ण मानता है और कहा कि दिव्यांग व्यक्तियों को न्यायिक सेवा में भेदभाव का सामना नहीं करना चाहिए. राज्य को समावेशी व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए.
दृष्टिबाधित अभ्यर्थी की मां ने पिछले साल मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा शर्तें) नियम के खिलाफ पत्र याचिका दी, जिस पर अदालत ने स्वत: संज्ञान मामला दर्ज किया था. सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिसंबर, 2024 को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया.