भाजपा का अगला अध्यक्ष कब और कौन होगा, यह प्रश्न राजनीतिक चर्चा का विषय बना हुआ है. भारतीय जनता पार्टी को होली (14 मार्च) के बाद और 21 मार्च से पहले किसी भी समय नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल सकता है. यह संभावना जताई जा रही है कि भाजपा अपने नए अध्यक्ष की घोषणा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक से पहले करेगी, जो 21 से 23 मार्च तक बेंगलुरु में आयोजित होगी. भारत का सबसे सफल राजनीतिक दल भाजपा वर्तमान में अपने नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति की प्रक्रिया में है. केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस संबंध में एक समय सीमा निर्धारित करते हुए बताया कि पार्टी मार्च के मध्य तक जेपी नड्डा के उत्तराधिकारी का चयन कर लेगी. इससे पूर्व भी पार्टी ने मार्च के मध्य तक अध्यक्ष के चुनाव की बात की थी.
केंद्रीय मंत्री ने मीडिया से बातचीत में बताया कि हमारी पार्टी में अध्यक्ष के चुनाव के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया है. हम उसी के अनुसार कार्य करेंगे और यह जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है कि मार्च के मध्य तक पार्टी को नया अध्यक्ष प्राप्त हो जाएगा.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पार्टी की राज्य इकाइयों द्वारा उनके चुनावों के संपन्न होने के बाद निर्धारित किया जाता है. पहले यह प्रक्रिया जनवरी में पूरी होने की योजना थी, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव और कई राज्य इकाइयों के लंबित चुनावों को ध्यान में रखते हुए इसे मध्य मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया.
भाजपा में अध्यक्ष का चुनाव कैसे किया जाता है?
भारतीय जनता पार्टी के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए आवश्यक है कि कम से कम 50 प्रतिशत राज्य इकाइयों ने अपने अध्यक्षों का चुनाव पहले से कर लिया हो. इस कारण, राज्य स्तर पर चुनाव प्रक्रिया को तेज किया जा रहा है. वर्तमान में 36 राज्य इकाइयों में से केवल 12 में चुनाव संपन्न हो चुके हैं, जिसका अर्थ है कि अभी भी कम से कम 6 राज्य इकाइयों में चुनाव होना बाकी है. पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव के माध्यम से पार्टी अध्यक्ष और निर्वाचक मंडल के सदस्यों का चयन किया जाता है.
क्यों हो रही देरी
देरी का मुख्य कारण दिल्ली चुनाव है, जिसके चलते पिछले साल दिसंबर में प्रचार की शुरुआत हुई और यह जनवरी में अपने चरम पर पहुंच गया. इसके अतिरिक्त, प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ का आयोजन हुआ, जो 26 फरवरी तक चला. इस दौरान बीजेपी नेतृत्व या तो कुंभ के दौरे में व्यस्त रहा या विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों का जवाब देने में लगा रहा, जिससे संगठन को चुनाव पर ध्यान केंद्रित करने का सीमित समय मिला.

