नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र पंचायत व स्थानीय निकाय के चुनाव बगैर ओबीसी आरक्षण के कराने का निर्देश दिया है. गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य के इन चुनावों में 27% ओबीसी आरक्षण तय करने से इनकार कर दिया है. महाराष्ट्र में स्थानीय निकायों के चुनाव के मद्देनजर ओबीसी वर्ग के लोगों को समुचित प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण के मामले में राज्य चुनाव आयोग की रिपोर्ट से असंतोष जताते हुए कोर्ट ने रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को तर्क संगत बनाने को कहा.
जस्टिस एएम खानविलकर की अगुआई वाली पीठ ने आयोग की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि आयोग को मुहैया कराए गए आंकड़ों की सत्यता जांचने को पड़ताल करनी चाहिए थी. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सीधा लिख दिया कि अन्य पिछड़ी जातियों को स्थानीय निकायों में उचित प्रतिनिधित्व मिल रहा है. कोर्ट ने सख्ती से पूछा कि आयोग को कैसे पता चला कि आंकड़े ताजा सही और सटीक हैं?
इस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि आयुक्त की मौजूदगी में ही आंकड़े सीएम के पास आए थे. आयुक्त और से साक्षी थे. इस दलील से नाराज जस्टिस खानविलकर ने कहा कि सरकारी काम काज क्या ऐसे ही होता है? कोई तो अनुशासन और विधि प्रक्रिया होगी कामकाज की? रिपोर्ट पर कोई तारीख नहीं है तो ऐसे में हम ये कैसे पता लगाएं कि रिपोर्ट मामले की गहराई तक सोच समझ के बाद बनाई गई है या फिर बस यूं ही! कोर्ट ने पूछा, आयोग के कामकाज का यही ढर्रा रहेगा तो हमें रिपोर्ट और इसमें की गई अनुशंसाओं पर शक क्यों न हो?
कोर्ट ने आयोग को फटकार लगाते हुए कहा कि यह रिपोर्ट देखकर ऐसा लगता है कि मानो कहीं से कट, कॉप-पेस्ट किया गया हो. रिपोर्ट में रेशनल की वर्तनी भी सही नहीं लिखी गई है, ऐसे में इस रिपोर्ट को कैसे सही मान लिया जाए. जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि आपकी रिपोर्ट के समर्थन में एक भी तर्क नहीं है. अपनी सिफारिशों को तर्क से सिद्ध करने का एक भी प्रयास नहीं है. यह सिर्फ अंतरिम रिपोर्ट है कोर्ट द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद बचाव करते हुए आयोग की ओर से वकील शेखर नाफड़े ने कहा कि ये तो अंतरिम रिपोर्ट है. ये सिर्फ आरक्षण के अनुपात और अन्य मानदंडों की समीक्षा करती है. जस्टिस खानविलकर ने कहा कि इस दलील में भी दम नहीं है क्योंकि आयोग ने अपनी रिपोर्ट और अनुशंसा में पहले आंकड़ों को नकार ही दिया. फिर उन्हीं पर अपनी रिपोर्ट को आधारित भी कर दिया. लेकिन बिना तर्क और दलीलों के. आखिर आपकी रिपोर्ट का आधार क्या है? इस पर जवाब देते हुए नाफड़े ने फिर कहा कि आयोग अपनी सिफारिशों को स्थानीय निकाय के साथ तर्क संगत ढंग से सिद्ध कर सकता है. नाफड़े के इस जवाब के बाद जस्टिस खानविलकर ने इसे साबित करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया. जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि डाटा को जस का तस चिपका देने के अलावा भी आपको अपनी ओर से कुछ तो करना था.