H-1B Visa: एच-1बी वीजा को लेकर अब अमेरिका में नया प्रस्ताव, लॉटरी सिस्टम होगा खत्म

Donald Trump New Rule For H-1B Visa: एच-1बी वीजा में 100% फीस वृद्धि पर मचे हंगामे के बीच डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा को लेकर नया प्रस्ताव लाया है। ट्रम्प प्रशासन ने मंगलवार को H-1B वीज़ा प्रणाली में बड़ा बदलाव करने का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत अब लॉटरी सिस्टम से वीजा किसी को नहीं दिया जाएगा। सैलरी के आधार पर वीजा देने का प्रावधान होगा। नए नियमों के तहत यदि आवेदन निर्धारित कोटे से अधिक आते हैं तो प्राथमिकता उन विदेशी कर्मचारियों को दी जाएगी, जिन्हें अधिक वेतन की पेशकश की गई है। इसके साथ ही नए वीज़ा आवेदन पर एकमुश्त 100,000 डॉलर का शुल्क लगाने का सुझाव भी रखा है।

बता दें कि H-1B वीजा को वर्कर वीजा कहा जाता है। H-1B वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी पेशेवरों (जैसे वैज्ञानिक, इंजीनियर, कंप्यूटर प्रोग्रामर) को काम पर रखने की परमिशन देता है। इसकी अवधि 3 साल की होती है, जिसे 6 साल तक बढ़ाया जा सकता है। इस वीजा के जरिए अमेरिका दूसरे देशों के होनहार लोगों को अपने मुल्क में काम कराने के लिए आमंत्रित करता है।

अब तक H-1B वीज़ा का आवंटन लॉटरी प्रणाली से होता था। प्रस्तावित बदलाव के बाद यह प्रणाली समाप्त हो सकती है और अधिक सैलरी वाले आवेदनों को पहले मंज़ूरी मिलेगी। अमेरिकी प्रशासन का तर्क है कि इससे कम वेतन पर विदेशियों की भर्ती पर रोक लगेगी और अमेरिकी कर्मचारियों के लिए नौकरी के अवसर सुरक्षित रहेंगे।

अमेरिका के सामने ये मुश्किलें

विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से अमेरिका की टेक्नोलॉजी और इनोवेशन क्षमता पर असर पड़ सकता है। बड़ी संख्या में उच्च श्रेणी के कुशल इंजीनियर और टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स भारत और अन्य देशों से H-1B वीज़ा के ज़रिए अमेरिका जाते हैं। यदि शुल्क और वेतन आधारित प्राथमिकता लागू हो गई तो स्टार्टअप और छोटे व्यवसाय विदेशी प्रतिभा को आकर्षित नहीं कर पाएंगे। साथ ही, चीन, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देश इस स्थिति का लाभ उठाकर वैश्विक प्रतिभाओं को अपनी ओर खींच सकते हैं।

कारोबार जगत में बंटे सुर

अमेरिका के उद्योग जगत में इस प्रस्ताव पर अलग-अलग राय सामने आई है। कुछ बड़े टेक दिग्गज इसे योग्यता आधारित चयन की दिशा में कदम मानते हैं। वहीं कई वित्तीय और निवेश क्षेत्र के नेता इसे देश की प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए खतरा बता रहे हैं। उनका कहना है कि अत्यधिक शुल्क और सैलरी की शर्तें स्टार्टअप्स और नई कंपनियों के लिए बाधा बन जाएंगी।

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