डोनाल्ड ट्रंप(Donald Trump) प्रशासन H-1बी वीजा की फीस 1 लाख डॉलर करने की तैयारी में है। इसका मतलब है कि भारत या अन्य देशों के नागरिकों को अमेरिका में नौकरी के लिए एच-1बी वीजा लेने पर लगभग 80 लाख रुपये खर्च करने होंगे। H-1बी वीजा का लाभ लेने वाले लोगों में भारत और चीन के नागरिक सबसे अधिक हैं। सूत्रों के अनुसार, लगभग 70 फीसदी वीजा धारक भारतीय हैं, जो अब इस फैसले से सबसे बड़ा असर झेल सकते हैं।
इसके साथ ही प्रशासन एच-1बी वीजा नियमों में बदलाव भी करने जा रहा है। इसके तहत तय किया जाएगा कि कौन वीजा के लिए योग्य होगा और कंपनियां इसे कैसे इस्तेमाल कर सकती हैं। अमेरिका के गृह विभाग की ओर से जारी प्रस्ताव में यह संकेत भी दिया गया है कि एच-1बी वीजा की पात्रता और आवेदन प्रक्रिया को और सख्त किया जा सकता है। वर्तमान में एच-1बी एक अस्थायी वीजा कैटिगरी है, जो गैर-अमेरिकी नागरिकों को अमेरिका में काम करने का मौका देती है। खासकर भारतीय मूल के पेशेवर बड़े पैमाने पर इसका लाभ उठाते रहे हैं।
एच-1बी वीजा कैटिगरी की शुरुआत 1990 के इमिग्रेशन एक्ट के तहत की गई थी। इसके तहत अमेरिकी कंपनियों को यह अनुमति दी गई कि वे बाहरी देशों के लोगों को अपने यहां काम पर रख सकें, जिनके पास आवश्यक तकनीकी और पेशेवर कौशल हो। इसी नियम के चलते बड़े पैमाने पर भारतीय पेशेवरों को अमेरिका में काम करने का मौका मिला। विशेष रूप से अमेरिकी टेक कंपनियों में भारतीयों की बड़ी संख्या है। मूल नियम के अनुसार, सालाना 65,000 एच-1बी वीजा जारी किए जाते थे। इसके अतिरिक्त, 20,000 वीजा उन लोगों के लिए आरक्षित थे, जिन्होंने अमेरिका की किसी यूनिवर्सिटी से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की हो। इसके अलावा कई यूनिवर्सिटी और गैर-लाभकारी संस्थाओं को भी वीजा से छूट मिली हुई थी।
प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में एच-1बी वीजा धारकों में लगभग तीन चौथाई भारतीय थे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2012 से अब तक एच-1बी वीजा हासिल करने वाले 60 फीसदी लोग कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी से संबंधित नौकरियों में गए। इसके अलावा, हेल्थ सेक्टर, बैंकिंग, यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थानों के लिए भी एच-1बी वीजा जारी किए गए।

