राजनांदगांव। कल यानि 3 मई मंगलवार को तिथि आधारित पर्व अक्षय तृतीया आखा तीज या भगवान परशुराम जयंती है। इसे मनाने को लेकर जिले में व्यापक तैयारियां चल रहीं हैं। जहां ब्राम्हण समाज इसे अपने आराध्य भगवान परशुराम जयंती के रूप में सोल्लास मनायेगा वहीं कृषक वर्ग इसे अक्षय तृतीया या अक्ती के रूप में परंपरागत रूप से मनायेगा। वहीं अक्षय तृतीया को विवाह आदि मांगलिक कार्यों के लिये देवलग्न माना जाता रहा है और इस अवसर बड़ी संख्या में शादियां होंगीं। बच्चों में भी इसे लेकर कम उत्साह नहीं है। वे बाजार से मिट्टी के गुड्डे-गुड़िया (दूल्हे-दुल्हन) मंगाकर बड़े लोगों के जैसे रस्मो रिवाज से उनका विवाह अपने-अपने घरों-मुहल्लों में रखने की तैयारी जो कर रहे हैं, मार्केट में बड़ी संख्या में गुड्डे-गुड़ियां बिकने के लिये आ गये हैं। वहीं मिट्टी के नये घडे़ भी अक्षय तृतीया में खरीदकर उनका शीतल जल पीने की परंपरा रही है और बाजार में नये घड़े भी बड़ी संख्या में देखे जा रहे हैं।
बीजारोपण का विशेष मुहूर्त है अक्षय तृतीया
मान्यता ही नहीं, परंपरा भी रही है कि बीज बोने के लिये अच्छा मुहूर्त रहता है। अतः किसान लोग गांव-मुहल्ले के शीतला मंदिर में पलाश पत्ते के द्रोण या दोने में धान बीज ले जाकर वहां के पंडा-पुजारी के साथ मिलकर पूजा करते हैं। फिर सभी का बीज मिलाकर प्रसाद के साथ फिर द्रोणों में भरकर किसानों को दिया जाता है फिर किसान उसी दिन उसे खेत में ले जाकर पूजा करके बोते हैं। यह परंपरा भी निभाई जाएगी। दूसरा यह कि वर्षाकालीन सब्जी के बीज जैसे तोरिया, कद्दू आदि अक्ती के दिन ही बो दिये जाते हैं। अच्छी पैदावारी के लिये ऐसा किया जाता है।