केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में बताया गया है कि वो अब राजद्रोह कानून की समीक्षा करने के लिए तैयार है. सरकार ने बताया है कि, वो भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानी राजद्रोह के प्रावधानों की फिर से जांच करेगी और इस पर पुनर्विचार किया जाएगा.
केंद्र की तरफ से दी गई ये दलील
कई दशकों से चले आ रहे इस कानून को लेकर काफी विवाद है, सरकारों पर इसके गलत इस्तेमाल के आरोप लगते आए हैं. ऐसे में बताया गया है कि मौजूदा दौर में इस औपनिवेशिक कानून की जरूरत का मूल्यांकन करने का फैसला पीएम मोदी के निर्देश के बाद लिया गया है. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर ये भी बताया गया है कि पुराने कानूनों की समीक्षा करना और उन्हें निरस्त करना एक सतत प्रक्रिया है और भारत सरकार ने 2014-15 से अब तक 1500 कानूनों को पहले ही रद्द कर दिया है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह भारत सरकार द्वारा धारा 124ए पर पुनर्विचार की कवायद का इंतजार एक उपयुक्त पीठ के समक्ष करे, जहां इस तरह के पुनर्विचार की संवैधानिक रूप से अनुमति है. साथ ही कोर्ट को ये भी कहा गया है कि जब तक इस मामले की जांच सरकार करती है, तब तक कोर्ट इसे ना उठाए.
पहले कानून को बताया था सही
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में 10 मई को राजद्रोह को लेकर सुनवाई होनी है. कोर्ट ने अपना जवाब स्पष्ट करने के लिए केंद्र और सभी पक्षों को वक्त दिया था. जिसके बाद अब केंद्र सरकार की तरफ से ये जवाब दिया गया है. हालांकि पहले हलफनामे में केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून को बिल्कुल सही बताया था और कहा था कि इस पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है.