देश में एजुकेशन एक बड़ा उद्योग बन चुका है। इसके चलते देश में मेडिकल एजुकेशन का खर्च न उठा पाने वाले छात्रों को यूक्रेन जैसे देशों में जाना पड़ रहा है। मंगलवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। कई याचिकाओं की सुनवाई करते हुए अदालत ने यह बात कही, जिनमें केंद्र सरकार को आदेश देने की मांग की गई थी कि उन्हें फार्मेसी कॉलेज खोलने की परमिशन दी जाए। दरअसल फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2019 में नए फार्मेसी कॉलेज बनाने पर रोक लगा दी थी। संस्था का कहना था कि देश में फार्मेसी कॉलेज एक उद्योग का रूप ले रहे हैं और उस पर रोक लगानी चाहिए।
केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और हिमा कोहली ने कहा, ‘हर कोई जानता है कि देश में शिक्षा आज एक उद्योग बन गया है। इन्हें संचालित करने वाले बड़े कारोबारी समूह हैं। इनके बारे में सोचना चाहिए। मेडिकल एजुकेशन की कीमत बहुत ज्यादा होने की वजह से लोगों को यूक्रेन जैसे देशों में जाना चाहिए।’ सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा, ‘देश में जिस तरह की स्थिति है, उस पर ध्यान देना चाहिए। कॉलेजों ने खुद ही अदालत में बताया है कि उन्होंने सरकारी रोक के चलते दोसाल खो दिए हैं। हम छात्रों की अर्जी को समझते हैं, लेकिन ये कॉलेज एक इंडस्ट्री बन चुके हैं।’
तुषार मेहता ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि इस तरह के कॉलेजों की संख्या बढृ रही थी। इसलिए हमने 5 वर्ष के लिए रोक लगाई थी। उन्होंने कहा कि अदालत जानती है कि देश में किस तरह से इंजीनियरिंग कॉलेजों को शॉपिंग सेंटर्स की तरह चलाया जा रहा है। देश में पहले ही 2500 कॉलेज मौजूद हैं। इस पर अदालत ने सहमति जताते हुए कहा कि हम भी देश में कॉलेजों की संख्या बढ़ने देना चाहते हैं। एक समय में तो देश में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग और बीएड कॉलेज थे। अदालत ने कहा, ‘हम फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से आग्रह करते हैं कि वह आवेदक कॉलेजों की मांग पर विचार करे। जिन्होंने तीन उच्च न्यायालयों में भी अर्जी दाखिल की थी।’