Movie Review: जैसे उनके चाहने वाले चाहते थे, वैसी ही है सम्राट पृथ्वीराज

कास्ट:  अक्षय कुमार, संजय दत्त, मानुषी चिल्लर, आशुतोष राणा, सोनू सूद, साक्षी तंवर और मानव विज आदि

निर्देशक:  चंद्र प्रकाश द्विवेदी

स्टार रेटिंग: 4/5

कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में

जुगनुओं को गुमान है कि उन्होंने सूरज को कैद कर लिया, जुगनुओं  को क्या पता कि उनके शहर में सूरज उगा ही कहां है. पृथ्वीराज चौहान के  चाहने वालों को लगता है कि वह सूरज थे और उनके आगे गौरी समेत सब जुगनू. तो मोहम्मद गौरी के आगे उनके मित्र और राज कवि चंद्र बरदाई ने जब ये लाइनें बोलीं, तो हॉल तालियों से गूंज उठा. लेकिन अति राष्ट्रवादी सवाल उठा सकते हैं कि चंद्र बरदाई शहर, गुमान, कैद जैसे अरबी फारसी के शब्द क्यों बोल रहे थे, जबकि देश में मुस्लिम शासन तो शुरू भी नहीं हुआ था. लेकिन फिल्म से वरुण ग्रोवर जुड़े हों तो ऐसा हो सकता है.

हल्के बदलाव

इस मूवी की कहानी यूं तो सबको पता है ही, लेकिन ये जान लें कि कहानी पृथ्वीराज रासो से ही ली गई है यानि आपको पता ही है. डॉन के रीमेक में बदलाव की तरह बस इतना बदलाव है कि मत चूको चौहान तो है, लेकिन गौरी की पोजीशन वाली लाइन नहीं.

दमदार तरीके से दिखाई ऐतिहासिक कहानी

बाकी कहानी वैसे ही है, जैसी की आपने सुनी होगी. यानी पृथ्वीराज चौहान का संयोगिता संग प्रेम, स्वयंवर, पिता जय चंद्र का नाराज होना, पृथ्वीराज का मोहम्मद गौरी को तराइन के पहले युद्ध में  हराकर बंदी बना लेना और फिर माफ कर देना, दूसरे युद्ध में गौरी का धोखे से पृथ्वीराज को बंदी बनाकर अंधा कर देना और फिर शब्द भेदी बाण चलाकर गौरी को मौत के घाट उतार देना.

लेकिन कहानी में भी कुछ नई बातें आम लोग जानेंगे जैसे, गौरी के भाई का गौरी की रखैल को लेकर भागकर पृथ्वीराज की शरण में आना,  काका कंक का किरदार जिसे संजय दत्त ने इस मूवी में किया है, संयोगिता का जोहर, दिल्ली की गद्दी से जयचंद का नाता आदि.

इमोशनली तौर पर जुड़ेंगे

मूवी पूरी तरह से पृथ्वीराज रासो की तरह ही बनाई गई है, ऐसे में पृथ्वीराज का हर फैसले में अपने सामंतों की राय को तबज्जो देना, भरे दरबार में राज्य के बड़े बूढ़ों की डांट तक सुन लेना, नारी की इज्जत को सबसे ज्यादा तबज्जो देना और वचन पालन के धर्म के लिए जान तक दांव पर लगा देना, ये कई ऐसी बातें होगी, जो उनके चाहने वालों को इस मूवी से इमोशनली जोड़ेंगी.

जबरदस्त स्पेशल इफेक्ट्स

फिल्म की सबसे खास बात है फिल्म के शानदार स्पेशल इफेक्ट्स, मूवी का पहला सीन ही आपको बाहुबली और बाजीराव मस्तानी से से तुलना करने पर मजबूर कर देगा. युद्ध के सीन भी विहंगम बन पड़े हैं. म्यूजिक शंकर एहसान लॉय का है, जाहिर है चुनौती थी, काफी हद तक वो इस चुनौती में खरे उतरे भी हैं, तीन चार गाने अच्छे बन पड़े हैं, उम्मीद है कि वो लोगों की जुबान पर चढ़ेंगे.

सभी मंझे हुए किरदार 

एक्टिंग की बात करें तो अक्षय कुमार ने इस मूवी में वाकई में ओवर एक्टिंग से दूरी बरती है, मौके होने के बावजूद वह लाउड होने से बचे हैं, बल्कि डायरेक्टर उनको चुप रखकर बाकी किरदारों को बोलने, उन्हें उभारने का मौका देते हैं, तभी सोनू सूद, संजय दत्त, मनुष्य छिल्लर और उनके दो तीन सामंतों को अच्छी फुटेज मिली हैं, जिससे मूवी को फायदा ही होगा. बाकी सभी मंझे हुए किरदार हैं साक्षी तंवर हों, या फिर आशुतोष राणा, मानव विज हों या सोनू सूद. मानुषी की पहली मूवी है, सो अभी कोई राय बनाना ठीक नहीं होगा, लेकिन वो निराश तो कतई नहीं करतीं.

अब बात इतिहास की थी, डायरेक्टर चंद्र प्रकाश द्विवेदी भी इस मूवी के साथ इतिहास बनाने जा रहे थे, उनके पास मौका था कि जयचंद को गद्दार के ठप्पे से मुक्ति दिला देते, जोकि गलत तथ्यों के आधार पर दुष्प्रचारित हुआ लेकिन वो भी यहां चूक गए. हालांकि उनसे नाराज वो गुर्जर भी होंगे जो पृथ्वीराज के गुर्जर होने का दावा करते आए हैं. लेकिन ब्राह्मण खुश हो सकते हैं कि पृथ्वी चंद्र भट्ट यानी चंद्र बरदाईं को इतना सम्मान मिला है, उनके बिना पृथ्वीराज भी कुछ नहीं होते. मूवी में और बेहतरीन डायलॉग्स हो सकते थे, कुछ हैं भी, तो hayan भी फिल्म थोड़ा चूकती है.

फिल्म में बहाया गया खूब पैसा

बावजूद इसके ये तय मान कर चलिए कि इस मूवी की कामयाबी को रोकना काफी मुश्किल है, जो भी इस अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान को जानना चाहता है, उन्हें श्रद्धांजलि देना चाहता है, वो ये मूवी देखेगा ही और यशराज फिल्म्स ने इस मूवी को आपकी आंखों में अच्छी दिखने लायक बनाने के लिए काफी पैसा और मेहनत भी खर्च की है. बाकी धक्का राष्ट्रवादियों की फौज और अक्षय कुमार के फैंस कर ही देंगे.

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