रायपुर। रथयात्रा पर शुक्रवार को श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ेगा। राजधानी के मंदिरों में तैयारियां पूरी कर ली गई है। शहर के पुरानी बस्ती स्थित 500 साल पुराने मंदिर के साथ ही गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर से निकलने वाली रथयात्रा प्रमुख आर्कषण का केंद्र रहेगी। गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर से निकलने वाली यात्रा में पारंपरिक रस्मों का निर्वहन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल करेंगे। उनका काफिला सुबह 11.30 बजे गायत्री नगर पहुंचेगा।
मंदिर के संस्थापक पुरंदर मिश्रा ने बताया कि अतिथिगण रथ के आगे स्वर्णयुक्त झाड़ू से बुहारने की परंपरा निभाएंगे। इसे छेरा-पहरा रस्म कहा जाता है। 30 जून को नेत्रोत्सव मनाया गया। एक जुलाई को भगवान की प्रतिमा को गर्भगृह से बाहर निकालकर रथ पर विराजित किया जाएगा। भगवान जगन्नााथ 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर अस्वस्थ हुए थे। 16 दिनों से मंदिरों के पट बंद थे और भगवान एकांतवास में निवास कर रहे थे। भगवान को स्वस्थ करने के लिए प्रतिदिन औषधियुक्त काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जा रही थी। बुधवार को सुबह अमावस्या तिथि पर काढ़ा पिलाने की अंतिम रस्म निभाई गई। आषाढत शुक्ल प्रतिपदा पर गुरुवार को नेत्रोत्सव मनाया गया।
द्वितीया तिथि पर शुक्रवार को भगवान जगन्नााथ, भैया बलदेव और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर प्रजा से मिलने के लिए नगर भ्रमण पर निकलेंगे। मंदिर समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि कोरोनाकाल में राहत के बाद इस बार श्रद्धालुओं में अत्यधिक उत्साह रहेगा। तीन अलग-अलग रथ पर भाई-बहन को विराजित किया जाएगा। यात्रा शंकरनगर, बीटीआइ मैदान होते हुए वापस मंदिर पहुंचेगी। मंदिर के नीचे स्थित गुंडिचा मंदिर में भगवान नौ दिन विश्राम करेंगे। इसे मौसी का घर कहा जाता है।
ये हैं सबसे प्राचीन मंदिर
1. पुरानी बस्ती : टुरी हटरी, पुरानी बस्ती स्थित 500 साल पुराने जगन्नाथ मंदिर में महंत रामसुंदरदास के नेतृत्व में अभिषेक, हवन-पूजन के बाद दोपहर तीन बजे रथयात्रा निकाली जाएगी। यात्रा लोहार चौक, अमीनपारा थाना, कंकाली तालाब, आजाद चौक, आमापारा होते हुए लाखेनगर गुंडिचा मंदिर पहुंचेगी।
2. सदरबाजार : सदरबाजार स्थित 150 साल पुराने जगन्नाथ मंदिर में पुजारी परिवार के नेतृत्व में पूजन के बाद गाजे-बाजे के साथ यात्रा निकाली जाएगी। यात्रा कोतवाली चौक, कालीबाड़ी होते हुए टिकरापारा पुजारी पार्क के समीप गुंडिचा मंदिर में समाप्त होगी।
यहां भी दिखेगा उत्साह
रथयात्रा का उत्साह कोटा स्थित श्रीरामदरबार परिसर, अश्विनी नगर, गुढ़ियारी, आकाशवाणी कालोनी, पुराना मंत्रालय, लिली चौक और 10वीं यात्रा आमापारा नगर निगम कालोनी से निकलेगी। गजा-मूंग का प्रसाद लेने और भगवान का रथ खींचने के लिए श्रद्धालुओं में उत्साह छाएगा। प्रशासन ने मंदिर समितियों के माध्यम से श्रद्धालुओं को मास्क और अन्य प्रोटोकाल पालन करने की अपील की है।
मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को रथयात्रा की दी बधाई
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियों को रथयात्रा की बधाई और शुभकामनाएं दी है। उन्होंने इस अवसर पर भगवान जगन्नााथ से सभी नागरिकों की सुख, समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना की है। मुख्यमंत्री ने रथयात्रा की पूर्वसंध्या पर जारी अपने बधाई संदेश में कहा है कि प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़वासियों की भगवान जगन्नााथ में गहरी आस्था रही है। महाप्रभु जगन्नााथ के धाम पुरी सहित संपूर्ण भारत में एक साथ निकलने वाली यह रथयात्रा सांस्कृतिक एकता तथा सौहार्द्र का प्रतीक है।
मुख्यमंत्री ने कहा है कि प्रदेश में कोरोना संक्रमण के प्रकरण सामने आ रहे हैं। इसे देखते हुए रथयात्रा के दौरान कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोग एक जगह भीड़ लगाने से बचें और मास्क, फिजिकल डिस्टेंसिंग जैसे संक्रमण से बचाव के लिए जारी दिशा-निर्देशों का पालन करें।
गायत्री नगर स्थित जगन्ना्ाथ मंदिर में रहेगा आकर्षण
जिस तरह ओडिशा के जगन्नाथपुरी धाम की यात्रा विश्वभर में प्रसिद्ध है, उसी तरह रायपुर के गायत्री नगर स्थित जगन्नाथ मंदिर की रथयात्रा पूरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। पुरी धाम की तरह इस मंदिर में भी तीन अलग-अलग रथ पर भाई-बहन विराजित होकर नगर भ्रमण करने निकलते हैं। मूल मंदिर से बाहर आकर नौ दिनों तक गुंडिचा मंदिर में निवास करते हैं। 10वें दिन फिर रथयात्रा की वापसी मंदिर में होती है। वापसी यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ का यह पहला मंदिर है, जहां तीन रथ पर यात्रा निकलती है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदी घोष एवं बड़े भैया बलभद्र के रथ को तालध्वज तथा बहन सुभद्रा के रथ को देवदलन रथ कहा जाता है। सबसे आगे बलरामजी का रथ, बीच में सुभद्राजी का और आखिरी में जगन्नााथजी का रथ निकाला जाता है।
मूल मंदिर के नीचे गुंडिचा मंदिर
ऊंचाई पर स्थित गर्भगृह में विधिवत पूजा-अर्चना के बाद भाई बहन को रथ पर विराजित कर यात्रा निकाली जाती है। भगवान को गायत्री नगर, शंकरनगर, बीटीआई मैदान आदि इलाकों का भ्रमण कराया जाता है। यात्रा के पश्चात मूल मंदिर के नीचे भूतल पर भगवान 10 दिनों के लिए विराजते हैं जिसे मौसी का घर (गुंडिचा मंदिर) कहा जाता है।
ओडिशा से लाई नीम लकड़ी से बनी मूर्तियां
ओडिशा के जगन्नााथ पुरी धाम के समीप गांव में कारीगरों ने नीम की लकड़ी से मूर्तियों का निर्माण किया। पुरी में पूजा अर्चना करके मूर्तियों को रायपुर लाया गया। पुरी के मूल मंदिर से ही 50 से अधिक विद्वान पुजारी प्राण प्रतिष्ठा कराने आए थे। रथयात्रा उत्सव के दौरान मनमोहक श्रृंगार करने के लिए पुरी से ही पोशाक और गहने मंगवाए जाते हैं। पुरी मंदिर में जिस तरह भगवान का श्रृंगार, पूजन होता है उसी परंपरा का पालन गायत्री नगर के मंदिर में किया जाता है।