राजनांदगांव (दैनिक पहुना)। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि साधना के लिए तन्मयता जरूरी है। प्रभु भक्ति तन्मयता से करें तो हमें सफलता के साथ साथ अपूर्व आनंद मिलता है। उन्होंने कहा कि यदि किसी कार्य में एकाग्रता हो तो वह कार्य अवश्य सफल होगा। उन्होंने कहा कि कोई भी कार्य पूरी तन्मयता के साथ करें।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन के दौरान जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि क्रिकेट या अन्य खेल में जिस तरह खिलाड़ियों में एकाग्रता रहती है और खेल के समय का बेसब्री से इंतजार रहता है। ठीक इसी तरह हमारे मन में भी साधना में तन्मयता होनी चाहिए और साधना के समय का बेसब्री से इंतजार होना चाहिए। हम साधना में इतने तल्लीन हो जाएं कि हमें बाहरी व्यथा का एहसास ना हो तभी हम प्रभु भक्ति पा सकते हैं। प्रभु भक्ति तन्मयता से करें तो सफलता के साथ साथ अपूर्व आनंद भी मिलता है। उन्होंने कहा कि कौन कहता है कि आम व्यक्ति में तल्लीनता नहीं होती, भारत.पाकिस्तान का क्रिकेट मैच होता है तो हम अपनी सुध बुध खोकर मैच देखने में लगे रहते हैं। इस दौरान हमें बाहरी दुनिया की कोई खबर नहीं होती। ठीक ऐसे ही तन्मयता हमारे भीतर साधना के समय भी होनी चाहिए। हमने एक मंत्र भी साध लिया तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा।