राजनांदगांव (दैनिक पहुना)। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि सम्यक दृष्टि प्राप्त करने वाला व्यक्ति वापस मनुष्य जन्म लेता है और वह हमेशा उच्च कुल को प्राप्त करता है। सम्यक दृष्टि वाला जीव अखबार या किसी पुस्तक को पड़ता है तो केवल “सार” ही ग्रहण करता है। आप मन में यह भाव रखें कि “मैं शुद्ध हूं” इससे सब भाव बाहर हो जाएंगे और व्यक्ति क्रोध, माया, मोह, लोभ से दूर रहेगा।
समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि क्रोध, माया, मोह, लोभ यह मेरा स्वभाव नहीं है। “मैं शुद्ध हूं।” क्रोध, माया, मोह, लोभ का भाव मुझे अशुद्ध कर देगा। उन्होंने कहा कि सम्यक दर्शन प्राप्त करें,सम्यक दृष्टि रखें। सम्यक दृष्टि वाला व्यक्ति कभी किसी चीज के जाने का गम नहीं करता। वह सोचता है कि जो मेरा है, वह जाएगा नहीं और जो जा रहा है, वह मेरा नहीं, जो जल रहा है ,वह मेरा नहीं और जो मेरा है, वह जलेगा नहीं। उन्होंने कहा कि हमारे बहाने जब इच्छाशक्ति पर हावी होते हैं तो हमें क्रोध आता है। मन की दो आंखें हैं एक अपना और दूसरा पराया। पराई आंखों में सब पराया ही दिखता है जबकि मेरे भाव वाली आंखों में अपना, पराया सब दिखता है। आत्मा में मेरे मन का भाव जुड़ा ही नहीं होता इसलिए आत्मा का कुछ भी नहीं जाता और उसे जाने का दुख भी नहीं होता। मन के भाव से कुछ जाता है तो दुख ही दुख होता है। सम्यक दर्शन वाला व्यक्ति किसी चीज के जाने का गम नहीं करता।
जैन संत ने कहा कि लालबत्ती वाली गाड़ी जिधर से गुजरती है उसे कोई नहीं रोकता किंतु गाड़ी से जब लालबत्ती हट जाती है तो उसे सलाम करने वाला भी रोक देता है। सम्यक दृष्टि भी शरीर रूपी गाड़ी में लालबत्ती की तरह ही है। यह शरीर में है तो कहीं नहीं रुकेगी। इसे किसी भी चीज के जाने का गम एवं खुशी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि “मैं शुद्ध हूं”, का माला फेरिए। जिस तरह साफ कपड़े पहनने वाला व्यक्ति कीचड़ में प्रवेश नहीं करता, ठीक उसी तरह मन में यह भाव आने पर व्यक्ति क्रोध, मोह, लोभ, माया से अपने आपको गंदा होने से बचाता है। उन्होंने कहा कि प्रतिदिन यह मनन करें और सम्यक दृष्टि अपनाने का प्रयास करें।