धन-संपत्ति दिक्कत नहीं देती, दिक्कत तो विलासिता देती है
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि मन में जैसे भाव रहते हैं, व्यक्ति वैसे ही अनुसरण करता है। मन में यदि भाव शुद्ध हो तो व्यक्ति का आचरण भी शुद्ध होता है। हमारा चित्त भावना से प्रभावित होता है।
समता भवन में आज अपने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान रत्नत्रय के माहान आराधक, परमागम रहस्यज्ञाता, परम पूज्य श्रीमद जैनाचार्य श्री रामलाल जी म.सा.के आज्ञानुवर्ती व्याख्यान वाचस्पति शासन दीपक श्री हर्षित मुनि ने कहा कि मन की भावना व्यक्ति के आचरण में परिवर्तन लाता है। व्यक्ति के भाव जैसे होते हैं उसका आचरण भी वैसा ही होता है। उन्होंने कहा कि अगर हम दुखी हैं तो अपनी भावनाएं बदलिए और खुश रहें। चित्त प्रसन्न रहेगा तो हर काम सफल होगा।
संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमें अपनी मर्यादा का ज्ञान होना चाहिए। धन, संपदा ,वैभव दिक्कत नहीं देती, दिक्कत तो तब होती है जब व्यक्ति में विलासिता आ जाती है। विलासिता आने पर व्यक्ति में दोषों का भंडार हो जाता है। विलासिता आने पर धन ,संपत्ति ,वैभव सब चले जाता है। विलासिता को अपने ऊपर हावी ना होने दें। उन्होंने कहा कि एक बार या अकेले पाप नहीं होता। यह बार-बार होता है। एक बार भी पाप का मन ना बनाएं अन्यथा बार-बार पाप होता रहेगा। मन में अच्छे भाव लाएं और अच्छे कार्य करें निश्चित ही आपका हर कार्य सफल होगा। निराश और उदासीनता के भाव आपके मन में नहीं आएंगे तो आप अपने को स्वस्थ महसूस करेंगे और आप पाप कार्य की ओर ध्यान नहीं देंगे।