राजनांदगांव (दैनिक पहुना)। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारे छोटे से भाव के कारण हमारी सालों की आराधना गौण हो जाती है। हमारे भीतर शुभ और अशुभ संस्कार दोनों भरे पड़े हैं, चिंगारी किस पर लगती है यह हमारे भाव पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि आइस फैक्ट्री में चिंगारी नुकसान नहीं पहुंचाती किंतु पेट्रोल पंप में यही चिंगारी तबाही मचा सकती है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारे भाव- देव, गुरु व धर्म के प्रति शुद्ध होने चाहिए। इनके प्रति यदि हमारे मन में विपरीत विचार आते हैं तो हमें इसका प्रायश्चित करना चाहिए अन्यथा यह हमें इतने नुकसान पहुंचाते है जितना कि क्रोध, माया , लोभ भी नहीं पहुंचाते। उन्होंने कहा कि कुछ चीजों को तर्क की बुद्धि से ऊपर रखना चाहिए, नहीं तो ऐसा होगा कि जिस डाल पर हम बैठे हैं, उसी डाल को काटने लगेंगे। उन्होंने कहा कि गुरु महाराज के प्रति मन में यदि कुछ विचार आ भी जाते हैं तो तत्काल उनके सामने आलोचना करनी चाहिए। देव, गुरु व धर्म के प्रति मन में कुछ बात रह जाए तो मन में हमें स्वच्छता अभियान चलाना चाहिए।
संत श्री ने फरमाया कि हम अपना मन बनाएं कि कम से कम इस भव (जन्म) में हम देव गुरु व धर्म के प्रति विपरीत विचार ना लाएं। यदि मन में कुछ बात रह गई है तो गुरु महाराज के सामने इसकी तुरंत आलोचना कर मन को साफ करें।