राजनांदगांव (दैनिक पहुना)। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि अगर हमें कोई अच्छा कार्य करने से रोकता है तो वह है हमारा मन। हमें इस मन को मारकर आगे बढ़ना है तभी हम लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे। उन्होंने कहा कि मन में यह ठान लें कि हमें समाधि चाहिए तो चाहिए ही। अगर हमने यह ठान लिया तो हमें लक्ष्य की ओर बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
समता भवन में अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि मन की इच्छा को मारने के लिए देर ना करें। व्यक्ति के सामने यदि लक्ष्य होता है तो वह उसे प्राप्त करने के लिए मन की इच्छाओं को मार देता है और आगे बढ़ता जाता है। उन्होंने कहा कि जिसे लक्ष्य तक पहुंचने की जल्दी होती है तो वह कहीं भटकता नहीं है। वह मन के बंधन में बंधता नहीं है। जब तक लक्ष्य तक पहुंचने की ठान कर आगे बढ़ने के लिए मन को मजबूत नहीं करेंगे तब तक हम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे। हमसे पाप होता ही रहेगा। मन को मजबूत कर यदि ठान लिया कि पाप नहीं करेंगे तो पाप के समय मन चेतावनी देते रहेगा।
जैन संत ने कहा कि व्यक्ति के अंदर तक कोई बात जाती है तो उसे पाने का उसका प्रयास भी जारी रहता है, वह असफलताओं से हार नहीं मानता। भीतर भावना होनी चाहिए। मनुष्य की वेदना शांत होती है तो समझो उसका पुण्य प्रकट हो गया है। हम जैसे देव, गुरु, धर्म के विपरीत आए विचारों की जिस तरह आलोचना करते हैं , उसी तरह अपने पाप, हिंसा की भी आलोचना करें। किसी जगह झूठी गवाही दी जिससे सामने वाले को नुकसान हुआ हो उसकी भी आलोचना कर क्षमा मांगे। हमारा भविष्य पाप भरा नहीं होना चाहिए। हमसे अपने द्वारा किए गए पाप की आलोचना करने में कहीं देर ना हो जाए और हम पाप का प्रायश्चित ना कर पाए, हमें प्रायश्चित तत्काल करना है और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है तथा समाधि प्राप्त करनी है।