राजनांदगांव(दैनिक पहुना)। छत्तीसगढ़ के रहवासी सहज और सरल स्वभाव वाले है तथा सभी धर्मो का समुचित आदर करते है। उक्त विचार हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग द्वारा हमर छत्तीसगढ़ विषय पर केन्द्रित प्रदर्शनी में शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के स्टॉल के विषय – ‘‘छत्तीसगढ़ के संत और धार्मिक संस्कृति’’ पर प्रदर्शित किए गए थे। स्टॉल गुरुघासीदास के सतनाम पंथ, कबीर के सहज दर्शन, वल्लभाचार्य के दैतादैत दर्शन, स्वामी आत्मानंद के सेवा विचार स्वामी निरंनानंद सरस्वती के योग दर्शन, महर्षि महेश योगी के भावातीत ध्यान और गहिरा गुरु के आदिवासी उत्थान पर केन्द्रित थी, जिसमें इन संतो के जन्म स्थान, छत्तीसगढ़ में प्रभाव क्षेत्र, सामाजिक संदेश और मूल उपदेशों को स्थान दिया गया था। संत दर्शन संबंधी महत्वपूर्ण जानकारियों का अवलोकन कर खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. ममता चन्द्राकर तथा हेमचंद यादव विश्वविद्यालय, दुर्ग की कुलपति डॉ. अरुणा पल्टा ने सराहना की। इस स्टॉल के संदर्भ में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. के.एल. टांडेकर ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए, उन्होने बताया कि छत्तीसगढ़ की पावन धरा ना केवल महान संतों की जन्मस्थली रही है वरन प्राचीनकाल से छत्तीसगढ़ में महान संतो, ऋषियों, मुनियों का आवागमन होता रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति सर्वसमावेशी और सहिष्णुतापूर्ण रही है। हेमचंद विश्वविद्यालय, दुर्ग द्वारा इस स्टॉल की रचनात्मक सहभागिता हेतु उत्कृष्ठता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम को संपन्न कराने में डॉ. शैलेन्द्र सिंह, डॉ. एच.एस. अलरेजा, प्रो. विकास कांडे तथा प्रो. हीरेन्द्र बहादुर ठाकुर का विशेष योगदान रहा। डॉ. एच. एस. भाटिया, प्रो. संजय सप्तर्षि ने स्टॉल में आकर उत्साहवर्धन किया। इस स्टॉल का सामग्री को भारी संख्या में प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने अवलोकन कर इसकी प्रशंसा की।