Who is IPS Suraj Singh: पांचवीं क्लास तक अपने दादा-दादी के साथ रहते हुए, सूरज सिंह परिहार ने उत्तर प्रदेश के जौनपुर के एक छोटे से गांव के स्कूल में पढ़ाई की. वह अपने दादा से देश और लोगों की सेवा करने वाले पुरुषों की कहानियों सुनकर बड़े हुए. पांचवीं क्लास के बाद वह अपने माता-पिता के साथ कानपुर के जाजमऊ के उपनगर में चले गए और एक हिंदी मीडियम स्कूल में शामिल हो गए. बड़े होकर वे न केवल पढ़ाई में बल्कि स्पोर्ट्स और क्रिएटिव राइटिंग में भी अच्छे थे. साल 2000 में, उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के हाथों रचनात्मक लेखन और कविता के लिए राष्ट्रीय बाल श्री पुरस्कार जीता.
2001 में 81 फीसदी नंबरों और सभी पांच सब्जेक्ट में डिस्टिंक्शन हासिल करने के बाद, उन्होंने यूपी बोर्ड से 12वीं क्लास में अपने कॉलेज में टॉप किया. हालांकि इससे बेहतरीन संस्थानों में पढ़ाई के रास्ते खुल जाने चाहिए थे, लेकिन परिहार की प्लानिंग अलग थी.
जॉइंट फैमिली थी और उनके पिता अकेले कमाने वाले थे. परिहार घरेलू आय में योगदान देना चाहता था. इसलिए उन्होंने एक कॉलेज से ग्रेजुएशन की और किराए के कमरे में अपने दोस्त अश्विनी के साथ अंग्रेजी बोलने के लिए एक कोचिंग सेंटर शुरू किया.
कहानी बाल श्री पुरस्कारों की है. जोनल और नेशनल लेवल पर सेलेक्शन राउंड के दौरान वह अक्सर उन बच्चों से हीन महसूस करते थे जिनसे वे मिले थे जो आसानी से अंग्रेजी बोल सकते थे. जबकि वह अच्छी तरह से अंग्रेजी पढ़, लिख और समझ सकते थे, बातचीत करना एक बड़ी समस्या थी, घर या स्कूल में कभी भी वह भाषा नहीं बोली थी. अखबार पढ़ना शुरू किया, अंग्रेजी चैनल देखकर और अक्सर आईने में खुद से बातचीत करते हुए, उन्होंने अपने दम पर भाषा सीखी.
शॉर्ट टर्म टारगेट घर भेजने के लिए पैसा कमाना था, लेकिन बड़ा टारगेट ग्रेजुएशन लेवल की पढ़ाई पूरी करना और यूपीएससी की अच्छी तैयारी के लिए संसाधन जुटाना था. कॉल सेंटर पर वॉइस और एक्सेंट की ट्रेनिंग लेने के बाद परिहार परीक्षा में फेल हो गए. जब उन्हें पैकअप करने और जाने के लिए कहा गया, तो उन्होंने अपने तत्कालीन मैनेजर कनिष्क से उन्हें एक आखिरी मौका देने के लिए विनती की.
उन्हें एक महीने का अल्टीमेटम दिया गया था. उस एक महीने में, इस नौजवान ने इतनी मेहनत की, कि उन्होंने न केवल दोबारा एग्जाम पास किया, बल्कि कंपनी के
टॉप पर्फोर्म करने वालों के लिए रिजर्व ‘द वॉल ऑफ फेम’ में कई बार जगह बनाई. वह पहले मूल्यांकन में 60 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ तेजी से बढ़ रहे थे. लेकिन अंदर ही अंदर दुखी भी थे. क्योंकि वह जानते थे कि यह मेरा लक्ष्य नहीं था. इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया. ईएक्सएल के वाइस प्रेसिडेंट ने उनकी सैलरी दोगुना करने की पेशकश भी की, लेकिन परिहार अपनी प्लानिंग पर अड़े रहे. अपनी बचत के साथ, वह 2007-08 में हिंदी साहित्य (यूपीएससी) के लिए कोचिंग लेने के लिए दिल्ली चले गए, लेकिन करीब छह महीने में उनका पैसा खत्म हो गया.
इसके बाद सूरज ने आठ बैंकों के लिए PO एग्जाम दिया और सभी एग्जाम पास कर लिए. इन्होंने 4 महीने बैंक ऑफ महाराष्ट्र में काम किया और इसके बाद वे एसबीआई में चले गए. इस बैंक की आगरा,रुड़की और दिल्ली ब्रांच में इन्होंने एक साल काम किया और फिर इन्हें चमोली में बैंक मैनेजर का पद दिया गया. ये तरक्की इनके लिए चिंता का विषय बन गई क्योंकि ये जानते थे कि चमोली में बैंक मैनेजर की पोस्ट संभालने के बाद यह अपने टारगेट से भटक जाएंगे. इसलिए इन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी. इसके बाद सूरज एसएससी की परीक्षा में ऑल इंडिया 23 रैंक के साथ कस्टम एण्ड इक्साइज़ विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में चुने गए. लेकिन इनका टारगेट अभी भी दूर था.
इसके बाद आता है यूपीएससी का नंबर साल 2011 में वह पहले राउंड में इंटरव्यू तक पहुंच गए थे लेकिन वह फाइनली सेलेक्ट नहीं हो पाए. 2012 में एग्जाम के बदले नियमों के कारण वह मेंस क्लियर नहीं कर पाए. इसके बाद अपने तीसरे और आखिरी अटेंप्ट में सूरज ने यूपीएससी एग्जाम क्लियर किया और आईआरएस के लिए सलेक्ट हुए. यह इनका आखिरी मौका था जिसमें आईपीएस बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया था लेकिन किस्मत अभी भी इनके साथ थी और इनका लक्ष्य खुद इनकी तरफ बढ़ रहा था.
ठीक इसी समय सरकार की तरफ से यूपीएससी मे दो अटेंप्ट बढ़ाने के साथ साथ आयु सीमा भी दो साल बढ़ा दी गई. लेकिन इन्हें दो अटेंप्ट की जरूरत ही नहीं पड़ी अपने अगले ही प्रयास में इन्होंने ऑल इंडिया रैंक 189 हासिल की. इसके साथ ही उनका लक्ष्य पूरा हो गया. अब सूरज सिंह परिहार IPS सूरज सिंह परिहार बन गए थे. यह करिश्मा उन्होंने 30 साल की उम्र में कर दिखाया था.