रायपुर। छत्तीसगढ़ में मसीहियों का 40 दिन का उपवासकाल बुधवार से प्रारंभ हो गया। आज भस्म बुधवार से इसकी शुरूआत हुई। अब संयमकाल में कोई भी समारोह -उत्सव, शादी- ब्याह व अन्य आयोजन नहीं होंगे। इस मौके पर गिरजाघरों में विशेष प्रार्थनाएं हुईं। धर्मगुरुओं ने मसीहीजनों से आह्वान किया कि वे संयमकाल में अपने जीवन पर नजर डालें। ऐसा जीवन व्यतीय करें जैसा ईश्वर हमसे चाहता है। प्रार्थना, तपस्या, दान व सहायता को तत्पर रहें।
छत्तीसगढ़ डायसिस के बिशप द राइट रेवरेंड अजय उमेश जेम्स ने उपवासकाल पर संदेश दिया कि राख के बुधवार को वर्तमान में मसीहीजन मनाते हैं उसके पीछे एक इतिहास है। भस्म यानी राख यहूदी पश्चाताप का चिन्ह है। इसे मसीहियों ने यहूदियों से ग्रहण किया है। जब -जब इंसान पापों को छोड़कर परमेश्वर की ओर फिरा है उसने अपने पापों की क्षमा के लिए अपने शरीर को राख से मला है। अपने ऊपर टाट लपेटा है। आज यदि हम अपने मन में दुखी होते हैं तो अपने कमरे में जाकर प्रार्थना कर लेते हैं। लेकिन अपने पश्चाताप का प्रगटन किसी और के सामने नहीं करना चाहते। प्राचीन चुनी हुई जाति में राख एक प्रचलित प्रतीक था। जोकि व्यक्तिगत व सामूहिक पश्चाताप का चिन्ह होता था। बहुत ही नम्रतापूर्वक परमेश्वर की नजदीकी में अपने पापों को माना जाता था। बिशप जेम्स ने पवित्र बाइबिल का संदर्भ देते हुए राख को शुद्धता का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि प्राचीनकाल में जब नए चर्च का निर्माण होता था, तब तो रोमी कलीसिया राख, दाखरस, नमक व पानी मिलाया जाता था। प्रभु के नए भवन में उसका पवित्र छिड़काव किया जाता था। इसके बाद तेल का भी विलोपन किया जाता था। जब पिछली शताब्दी के विधि व नियम समाप्त हो गए तब राख के छिड़काव की रीति -रिवाज बने। यह उपवासकाल बुधवार को प्रारंभ होता था। कलीसिया के लोग राख के तिलक लगाकर प्रभु की आराधना करते थे। यह राख बीते वर्ष के पाम संडे की खजूर की डालियों की राख होती थी। वास्तव में उपवासकाल प्रारंभ होने हमारे जाने – अंजाने पापों की क्षमा की प्रार्थना के लिए होता है। इसका तात्पर्य कुछ सामान्य शारीरिक क्रिया -कलापों को नकारना तथा कलीसिया के लिए प्रभु यीशु के द्वारा ठहराया गया नियम है।
जीवन का आंकलन करें, बुराइयों को त्यागे – आर्च बिशप
रायपुर कैथोलिक महाधर्मप्रांत के आर्च बिशप विक्टर हैनरी ठाकुर ने कहा कि हम इस संसार में यात्री हैं। यहां हमारा जीवन स्थायी नहीं है। हम यह विश्वास करते हैं कि हम ईश्वर के पास से आए हैं। हमारी सफलता उन्हीं के पास वापस पहुंचने में है। इस जीवन की यात्रा में हम ईश्वर के बताए मार्ग पर चलें। कई दफे मनुष्य इस मार्ग से भटक जाता है। इस वजह से कई बार हमारे जीवन में बुरा भी हो जाता है। इसलिए 40 दिनों के इस उपवास काल में आज भस्म बुधवार से ही हमें अपने जीवन की ओर देखना व उसका आंकलन करना है। हमसे गल्तियां हुईं हैं तो उसके लिए पश्चाताप करें। उत्साह व पप्रेम के साथ नए जीवन में आगे बढ़ें। ईश्वर के प्रति हमारी सही पहचान पड़ोसी से प्रेम के रूप में है। हमें प्रयास करना है कि हम पड़ोसियों से प्रेम रखें। सब आपस में एक देह की तरह परस्पर जुड़े रहें। आध्यात्मिक, सामाजिक व मानसिक स्वच्छता के लिए प्रार्थना करें। प्रभु यीशु के पुनरुत्थान की यात्रा में शामिल होने की तैयारी 40 दिनों में करें।
प्रमुख दिन –
22 फरवरी – भस्म बुधवार
26 फरवरी – उपवासकाल का प्रथम रविवार
26 मार्च – पेशन संडे
2 अप्रैल – पाम संडे (खजूर रविवार)
6 अप्रैल – पुण्य गुरुवार (मॉंडी थर्सडे)
7 अप्रैल – गुड फ्राइडे
8 अप्रैल – होली सेटेडे
9 अप्रैल – ईस्टर (पुनरूत्थान पर्व)