कमेटी के पास नहीं है ‘जादू की छड़ी’, सुप्रीम कोर्ट में चुप रही सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने जब पेगासस मामले की जांच के लिए रिटायर्ड जस्टिस आरवी रविंद्रन की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने की बात कही तो कानून एवं न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोगों ने इसे गर्व करने वाला फैसला करार दिया। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा, सर्वोच्च अदालत ने नागरिकों के अधिकारों को संरक्षित करने का काम किया है। ‘प्रभुसत्ता और अखंडता’ के नाम पर हर समय नागरिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं कर सकते। देश को इस फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट पर गर्व करना चाहिए। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा, सुप्रीम कोर्ट की कमेटी जो रिपोर्ट देगी, हम उसे मानेंगे। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं साइबर मामलों के विशेषज्ञ पवन दुग्गल कहते हैं, पेगासस जांच कमेटी की राह चुनौतियों से भरी है, जो सरकार ‘सुप्रीम कोर्ट’ में चुप रही, क्या आपको लगता है कि वह जांच कमेटी को कुछ बताएगी। ये तब है जब इस मामले की एफआईआर भी नहीं है।

पेगासस मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस रमन्ना ने जॉर्ज ऑरवेल को कोट करते हुए कहा, ‘अगर आप एक रहस्य रखना चाहते हैं, तो आपको इसे अपने आप से भी छिपाना होगा’। निजता के अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता। इस अधिकार और नागरिकों की स्वतंत्रता को बरकरार रखने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पवन दुग्गल ने बताया, ये एक ऐतिहासिक फैसला है। वर्तमान हालात में केंद्र सरकार की बात न मानकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक पेगासस मामले की जांच के लिए कमेटी गठित करना, ये गर्व करने लायक बात है। सुप्रीम कोर्ट का इशारा बहुत साफ है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के छाते के नीचे सरकार सब कुछ नहीं छुपा सकती। अब वह समय आ गया है जब सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा की एक बाउंड्री तय करनी होगी। अगर कहीं पर ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘निजता’ के बीच विरोधाभास पैदा होता है तो वहां समन्वय स्थापित करना पड़ेगा। पेगासस जासूसी मामले में लोगों की स्वतंत्रता को बनाए रखने के रक्षक के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा पेगासस मामले की जांच के लिए गठित कमेटी, कोई जादू की छड़ी नहीं है। पवन दुग्गल कहते हैं, अभी तो बहुत सी चुनौतियां आनी बाकी हैं। जांच कैसे आगे बढ़ती है, उसका तरीका क्या रहेगा और रिकॉर्ड कैसे तलब होगा, ऐसे बहुत से सवालों का जवाब मिलना अभी बाकी है। जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मामले में दस्तावेज या कोई अन्य जानकारी देने के लिए कहा, तो सरकार चुप हो गई। अब वही सरकार, जांच कमेटी के सामने सब कुछ लाकर रख देगी, क्या ऐसा संभव है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने जो स्टैंड रखा है, वह कमेटी के सम्मुख भी उसी स्टैंड पर कायम रह सकती है। हमें नहीं लगता कि सरकार अपना स्टैंड छोड़ेगी। ऐसे में जांच टीम के लिए मुश्किलें आना तय हैं। इसके लिए वे उपभोक्ता सामने आएं, जिनका नाम पेगासस जासूसी मामले की सूची में शामिल है। वे सबूत दें। पूर्ण सहयोग करें। एनएसओ सर्वर के पास जानकारी रहती है, लेकिन इस मामले में एफआईआर तक नहीं हुई है। कमेटी के पास पुलिस पावर का अभाव है। इसकी वजह से ‘एनएसओ’ को बुलाना आसान नहीं होगा। संबंधित कंपनी को विवश नहीं कर सकते।

जांच कमेटी को एक नहीं, कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। ये अभी तय नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित जांच कमेटी के पास किस हैसियत में और कितनी पावर या दायरा रहेगा। अगर उसे इस्राइल सरकार से मदद लेनी पड़ी तो वह मिलेगी या नहीं, ये पक्का नहीं है। पेगासस स्पाईवेयर बनाने वाली कंपनी एनएसओ के पदाधिकारी कमेटी के सामने पेश होंगे, ये देखने वाली बात है। बतौर पवन दुग्गल, इन चुनौतियों से परे भी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सोचा है। दरअसल, सर्वोच्च अदालत चाहती है कि पेगासस मामले की जांच के साथ एक ऐसा कानून भी बन जाए कि भविष्य में कोई भी तंत्र नागरिकों के अधिकारों का हनन न कर सके। कमेटी को ऐसे दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं या दिए गए हैं कि वे एक मजबूत कानून बाबत भी रिपोर्ट पेश करें। एक ऐसा कानून, जो लोगों की निजता के अधिकार का संरक्षक बने। इसका मकसद यह है कि कम से कम उस कानून के आने के बाद कोई दूसरी सरकार ऐसा कुछ करने का दुस्साहस न करे।

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस दीपक गुप्ता ने एक मीडिया हाउस के साथ बातचीत में कहा, आप देश की एकता व अखंडता के नाम पर हमेशा ही लोगों की निजता या प्रेस की आजादी को जोखिम में नहीं डाल सकते। एक सीमा तय करनी होगी। ये भी कम हैरानी वाली बात नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट को इस कमेटी के सदस्यों की तलाश के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ा। फैसले में मुख्य न्यायाधीश ने लिखा है कि सदस्य चुनने में मुश्किलें आई हैं। चूंकि यह कमेटी सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशन में काम करेगी, इसलिए सरकार को सहयोग करना होगा। मुख्य न्यायधीश एनवी रमन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हमने लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के हनन से बचाने के लिए कभी परहेज नहीं किया। केंद्र सरकार की एक्सपर्ट कमेटी को इस मामले की जांच नहीं दी सकती थी। न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। सर्वोच्च अदालत मूक दर्शक नहीं बन सकती। राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आतंकवाद के खिलाफ सर्विलांस जरूरी है, लेकिन उसमें नियम का पालन होना चाहिए।

 

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