क्या है ‘नेट जीरो’: पीएम मोदी ने COP26 में किया वादा, लक्ष्य तक पहुंचने के लिए क्या है तैयारी, जानें सबकुछ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को स्कॉटलैंड के ग्लासगो में यूएन के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम कॉप26 में हिस्सा लिया। मोदी ने यहां पहली बार भारत के उत्सर्जन में नेट जीरो के लक्ष्य को पाने की अवधि का एलान किया। मोदी ने कहा कि भारत 2070 तक नेट जीरो को हासिल कर लेगा। यानी भारत की तरफ से नेट जीरो तक पहुंचने का जो टारगेट रखा गया है, वो 2050 के वैश्विक लक्ष्य से दो दशक ज्यादा है। हालांकि, मोदी ने भारत की ओर से हो रही इस देरी पर कई तर्क दिए और विकसित देशों से विकासशील देशों के सहयोग की भी मांग की।

इस बीच यह समझना जरूरी है कि आखिर पीएम ने जिस नेट जीरो को 2070 तक पाने का लक्ष्य रखा है, वो है क्या? साथ ही भारत सरकार इस लक्ष्य को पाने के लिए आने वाले समय में क्या कदम उठाने वाली है और दुनियाभर के 2050 तक नेट जीरो को पाने के टारगेट के बीच भारत को इस लक्ष्य को पाने में देरी क्यों लगेगी।

क्या है नेट जीरो?
गौरतलब है कि अमेरिका समेत कई यूरोपीय देश लगातार 2050 तक नेट जीरो उत्सर्जन टारगेट हासिल करने की बात करते रहे हैं। नेट जीरो का अर्थ यह है कि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कार्बन न्यूट्रैलिटी यानी कार्बन के उत्सर्जन में तटस्थता लानी है। इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि कोई देश कार्बन के उत्सर्जन को शून्य पर पहुंचा दे (जो कि असंभव है)। बल्कि नेट जीरो का अर्थ है कि किसी भी देश के उत्सर्जन का आंकड़ा वायुमंडल में उसकी ओर से भेजी जा रही ग्रीनहाउस गैसों के जमाव को स्थिर रखे।

आसान भाषा में इस बात को तीन पॉइंट्स में समझा जा सकता है…

1. दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के लिए ग्रीनहाउस गैसों को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह वो गैस है, जिनका ज्यादा उत्सर्जन पूरी दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रहा है। इन गैसों में सबसे प्रमुख है कार्बनडाइऑक्साइड (CO2),मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (NO)। इसके अलावा इंसानों द्वारा बनाए गए कुछ कार्बन और फ्लोरीन गैस के कंपाउंड भी ग्रीनहाउस गैस में गिने जाते हैं, क्योंकि यह भी वायुमंडल में ऊर्जा छोड़ती हैं, जिससे अंततः ग्लोबल वॉर्मिंग पैदा होती है। यानी इन गैसों का ज्यादा उत्सर्जन धरती पर गर्मी का कारण बनता है।

2. धरती का तापमान बढ़ने का एक कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के ज्यादा जमाव को माना जा रहा है। जीवाश्म ईंधन और रोजमर्रा के कामों में आने वाले इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज (फ्रिज, एसी) में इस्तेमाल होने वाले कंपाउंड (क्लोरोफ्लोरोकार्बन-सीएफसी) आदि वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के ज्यादा इकट्ठा होने जिम्मेदार हैं। इनसे निकलने वाले खतरनाक तत्व प्रकृति को खासा नुकसान पहुंचाते हैं।

3. चूंकि दुनियाभर में जीवाश्व ईंधन और रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों का इस्तेमाल अचानक बंद नहीं किया जा सकता। ऐसे में इनके उत्सर्जन में कमी का एक लक्ष्य तय किया गया है। कई विकसित देशों ने तो यह लक्ष्य 2050 तक ही तय किया है। उनका कहना है कि अमीर देशों को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए जल्द से जल्द जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल पर रोक के साथ प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले कंपाउंडों के प्रयोग पर भी लगाम लगानी होगी। ताकि ग्रीनहाउस गैसों (मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड) का उत्सर्जन कम हो जाए।

तो क्या है नेट जीरो का लक्ष्य?
वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान का पूरा जीवन ही कार्बन पर निर्भर है। मनुष्य के शरीर से लेकर उसके आसपास मौजूद चीजें भी कार्बन और अन्य तत्वों के जोड़ से बनी है। यानी कार्बन उत्सर्जन को कभी खत्म नहीं किया जा सकता। लेकिन जिस स्तर पर मौजूदा समय में इसका उत्सर्जन हो रहा है, उसे नियंत्रण में लाया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि कोई देश वातावरण में कार्बन आधारित ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन कर रहा है, उतना ही उसे सोख और हटा भी रहा है। यानी उसकी तरफ से वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का योगदान न के बराबर हो। इसी को नेट जीरो कहा जाता है।

कैसे हासिल हो सकता है नेट जीरो का लक्ष्य?
इसे उदाहरण के जरिए समझना ज्यादा बेहतर रहेगा। दुनिया में जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों (कार, बस, जहाज, आदि) और फ्रिज, एसी में बढ़ते सीएफसी के इस्तेमाल की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी ज्यादा हुआ है। इस बढ़ते उत्सर्जन को हरे-भरे जंगलों के जरिए कम किया जा सकता है। पेड़ जो कि कार्बन डाइऑक्साइड सोखकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं, वे ग्रीनहाउस गैसे उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ और भविष्य की तकनीकों के जरिए उत्सर्जन पर लगाम लगाई जा सकती है।

यह तकनीकें जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करने में भी इस्तेमाल हो सकती हैं। मसलन सूर्य से मिलने वाली सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अब हर तरह की मशीन को चलाने में हो रहा है। इसके अलावा बिजली और ग्रीन फ्यूल से चलने वाले वाहनों पर भी जोर दिया जा रहा है। इनकी वजह से प्रदूषण के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन में भी कमी आ सकती है और कई देश जितना ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान दे रहे हैं, उसे जीरो तक या निगेटिव स्तर तक भी पहुंचा सकते हैं। मौजूदा समय में भूटान और सूरीनाम दो देश हैं, जो कि नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर चुके हैं, क्योंकि वे जितना कार्बन छोड़ रहे हैं, उससे ज्यादा उन्हें सोख लेते हैं।

क्यों जरूरी है नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करना?
पिछले दो सालों से नेट जीरो के लक्ष्य पर लगातार जोर दिया जा रहा है। विकसित देशों का कहना है कि अगर 2050 तक इस लक्ष्य को पूरा नहीं किया गया, तो 2015 में हुए पेरिस समझौते को पूरा नहीं किया जा सकेगा। इस समझौते का लक्ष्य सदी के मध्य तक पृथ्वी के तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने से रोकना है। हालांकि, अभी जिस तरह से उत्सर्जन का स्तर जारी है, उससे सदी के अंत तक पृथ्वी का तापमान 3 से 4 डिग्री तक बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।

क्या हैं भारत की आपत्तियां?
जहां विकसित देशों ने नेट जीरो 2050 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है, वहीं पीएम मोदी ने इस लक्ष्य को 2070 पर तय किया है। भारत शुरुआत से ही नेट जीरो के टारगेट को जल्दी हासिल करने पर आपत्ति जताता रहा है। इसकी वजह यही है कि विकासशील देश होने की वजह से अभी भारत की निर्भरता जीवाश्म ईंधन पर सबसे ज्यादा है। विकसित देशों के उलट भारत की अर्थव्यवस्था भी अभी लगातार बढ़ रही है, जिसकी वजह से ऊर्जा जरूरतें आगे भी बढ़ती रहेंगी और आगे दो-तीन दशकों तक भारत के उत्सर्जन स्तर के नीचे आने की कोई संभावना नहीं है।

भारत के लिए बढ़ते आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर की वजह से ज्यादा से ज्यादा वनीकरण भी काफी मुश्किल है। हालांकि, अगर वन संपदा को बचाए भी रखा जाए तो भी कम से कम अगले दो दशक तक भारत की तरफ से उत्सर्जन कम किया जाना काफी मुश्किल होगा। इसके अलावा कार्बन को वातावरण से हटाने की तकनीक भी या तो काफी महंगी है या फिर भरोसेमंद नहीं है। ऐसे में भारत की आबादी के लिए आने वाले सालों में नेट जीरो का टारगेट हासिल करना बेहद मुश्किल है।

क्यों सही हैं भारत की आपत्तियां?
सैद्धांतिक तौर पर भारत की आपत्तियां सही भी मानी जा रही हैं। नेट जीरो का लक्ष्य कभी भी 2015 के पेरिस समझौते का हिस्सा नहीं था। इस समझौते में शामिल देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए सिर्फ एक आधारभूत ढांचा खड़ा करना था और अपने पांच से दस सालों के लक्ष्य तय करने थे, जिससे वे यह दिखा सकें कि जलवायु परिवर्तन के लिए यह देश गंभीर हैं। भारत ने भी 2030 तक कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने का वादा किया है। दुनियाभर में सोलर एनर्जी अलायंस को बढ़ावा देना भारत की इसी नीति का हिस्सा है।

इससे पहले कई रिपोर्ट्स में सामने आ चुका है कि भारत जी-20 देशों में से इकलौता देश है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने और वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए काम कर रहा है। यहां तक कि यूरोपियन यूनियन (ईयू) और अमेरिका के कदम भी जलवायु परिवर्तन रोकने में अपार्यप्त करार दिए गए हैं। यानी भारत अपनी आबादी के हिसाब से अपनी जिम्मेदारियों का बेहतर तरीके से निर्वहन कर रहा है।

 

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