नई दिल्ली. जम्मू-कश्मीर के बाद अब राजस्थान (Rajasthan) में भी लिथियम (Lithium Deposit) के बड़े भंडार की खोज की गई है. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) के अधिकारियों ने भी इसकी पुष्टि की. माना जा रहा है कि नागौर इलाके में मिला यह भंडार हाल में जम्मू-कश्मीर में मिले भंडार से भी बड़ा है. रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों का दावा है कि राजस्थान में मिला लिथियम डिपॉजिट देश की 80 प्रतिशत मांग को पूरा कर सकती है. मालूम हो कि फरवरी में जम्मू और कश्मीर में लिथियम के भंडार की खोज की गई थी. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में 5.9 मिलियन टन लिथियम डिपॉजिट है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक लिथियम का भंडार मिलने से इलेक्ट्रिक गाड़ियों की लागत में काफी कमी आ सकती है. इससे ईवी व्हीकल के मार्केट और उनके ग्राहकों को आने वाले समय में काफी फायदा हो सकता है. बताया जा रहा है कि राजस्थान के बाद मेघालय, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी लिथियम की खोज की जा रही है.
लिथियम का उपयोग कहां किया जाता है?
वोक्सवैगन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लिथियम का ग्लोबल मार्केट काफी तेजी से बढ़ रहा है. 2008 और 2018 के बीच टॉप उत्पादक देशों में सालाना उत्पादन 25,400 से बढ़कर 85,000 टन हो गया है. लिथियम का सबसे ज्यादा इस्तेमाल इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बैटरी में होता है. हालांकि, लिथियम का उपयोग लैपटॉप और सेल फोन की बैटरी के साथ-साथ ग्लास और सिरेमिक उद्योगों में भी किया जाता है.
भारत के अलावा लिथियम और कहां पाया जाता है?
SPglobal की रिपोर्ट के मुताबिक 3 जून 2022 तक के आंकड़ों के अनुसार, बोलीविया में सबसे ज्यादा लिथियम डिपॉजिट था. इसके बाद चिली, ऑस्ट्रेलिया, चीन और अर्जेंटीना में भी डिपॉजिट मिला है. भारत की पहली बड़ी लिथियम डिपॉजिट की खोज दो साल पहले कर्नाटक में की गई थी. यहां 1600 टन का भंडार मिला था. क्वार्ट्ज की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के पास अब दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा लिथियम भंडार है.
भारत के लिए क्यों है अच्छी खबर?
दावा किया जाता है कि राजस्थान में मिला लिथियम भारत की कुल मांग का 80 फीसदी पूरा कर सकता है. लीथियम के लिए अभी तक भारत चीन पर निर्भर है. अब माना जा रहा है कि चीन का एकाधिकार खत्म हो जाएगा और खाड़ी देशों की तरह राजस्थान की भी किस्मत चमकेगी. राजस्थान में लिथियम के भंडार डेगाना और उसके आसपास के इलाके की उसी रेनवेट पहाड़ी में पाए गए हैं, जहां से कभी टंगस्टन खनिज की आपूर्ति की जाती थी. ब्रिटिश शासन के दौरान, अंग्रेजों ने 1914 में डेगाना में रेनवाट की पहाड़ी पर टंगस्टन खनिज की खोज की थी. स्वतंत्रता से पहले देश में उत्पादित टंगस्टन का उपयोग प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना के लिए युद्ध सामग्री बनाने में किया जाता था.