स्वार्थ सिद्ध हो जाने के बाद व्यक्ति एक गिलास पानी भी नहीं पूछता….

रायपुर। जैन संत श्री विरागमुनि जी का रायपुर प्रवेश हो चुका है और वे जिनवाणी की वर्षा करते हुए शहर के श्रावक-श्राविकाओं को लाभान्वित कर रहे हैं। जिनवाणी की वर्षा के क्रम में शुक्रवार को दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनिजी के श्रीमुख से विवेकानंद नगर में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचन का लाभ लिया। रायपुर शहर में चल रहे प्रवचन की श्रृंखला के दौरान उन्होंने कहा कि धर्म को सुनने से कल्याण होना ही होना है। आज बच्चे मोबाइल में व्यस्त हैं और उन्हें मंदिर और उपाश्रय लाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। प्रवचन के दौरान केवल आज 50 से 55 के उम्र वाले ही धर्म करने आते हैं। आज हम बच्चों को धर्मस्थलों तक नहीं ला पा रहे हैं, कारण यह है कि हमने व्यवस्था नहीं बनाई है। हमें बचपन से ही बच्चों के अंदर यह बीज बोना है तब जाकर के कुछ बात बनेगी। जबकि आज के समय में बच्चों और हमारे बीच में एक गैप आता जा रहा है। यह गैप बहुत ही हानिकारक हो सकता है क्योंकि यह गैप कुछ दिनों का नहीं, कुछ सालों का नहीं यह जेनरेशन गैप है, एक-एक पीढ़ी का गैप हमारे बीच कितना स्पेस बढ़ाता है, आप कभी सोच भी नहीं सकते हो।

मुनिजी ने आगे कहा कि आप कभी भी टीवी  देख लीजिए, किसी भी दिन अखबार उठाकर पढ़ लीजिए ऐसी खबरें आपको कहीं ना कहीं दिख ही जाएंगी। ऐसा कौन सा रिश्ता है जो आज की डेट में पवित्र है। केवल मां और संतान का ही रिश्ता एक अद्भुत रिश्ता होता है जिसे भी आज तार-तार किया जा रहा है। आपने देखा होगा कि अबॉर्शन तो अब बहुत ही सामान्य सी बात हो चुकी है, यहां तो बच्चे के पैदा होने के बाद भी उसे मार कर फेंक दिया जाता है। आज तो स्वार्थ पूरा हुआ नहीं की लोग एक दूसरे को भूल जाते हैं जैसे कि दूध में गिरी मक्खी। ऐसा कभी भी आपके साथ हो सकता है, जिस दिन स्वार्थ पूरा हो जाता है उसे दिन आपको कोई एक गिलास पानी भी नहीं पूछेगा। फिर भी आप मैं-मैं-मैं और मेरा-मेरा-मेरा का रट लगाए हुए हो जबकि आपका आज कुछ भी नहीं है, आप खत्म यानी दुनिया खत्म। कुछ भी आपके साथ नहीं जाने वाला है तो फिर काहे का अहम। आज हम भौतिक रूप से अच्छा काम तो कर रहे हैं पर आध्यात्मिक रूप से अच्छा करने का हमारे पास कोई लक्ष्य नहीं है। हम केवल स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही कर्म किए जा रहे हैं।

मुनिजी कहते है कि आज कई ऐसे संत भी हैं जिन्होंने केवल एक बार धर्म को सुनकर वैराग्य जीवन में प्रवेश कर लिया है लेकिन आपके कान में जू नहीं रेंग रही है। हर साल चातुर्मास आता है हर साल कहीं ना कहीं धार्मिक आयोजन होते हैं, कथाएं होती हैं और आप वहां जाते हैं, उसके बाद भी आप में कोई फर्क नहीं दिखाई दे रहा है। जब-जब धार्मिक आयोजन होते हैं तब तब आपके मन में हर्ष और आनंद रहता है लेकिन साथ में एक दुख भी रहता है कि जब तक यह धर्म का आयोजन चलेगा तब-तब हम अपने मन का कुछ खा-पी नहीं पाएंगे। अब आप खुद ही सोच लीजिए कि आपको कब यह भव दोबारा मिलेगा, ऐसा मौका फिर कब मिलेगा कि आप मोक्ष को प्राप्त कर लो।

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