एम्स विशेषज्ञ ने सरकार के फैसले को बताया अवैज्ञानिक, कहा- पीएम का प्रशंसक हूं, पर यह निर्णय निराशाजनक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार की रात को राष्ट्र के नाम संबोधन में 15 से 18 वर्ष के बीच की आयु वाले बच्चों के लिए कोरोना महामारी के खिलाफ टीकाकरण को अनुमति देने का एलान किया था। वहीं, रविवार को एम्स के वरिष्ठ महामारी विज्ञानी और कोरोना वायरस रोधी टीके कोवाक्सिन के वयस्कों व बच्चों के लिए ट्रायल के प्रमुख निरीक्षणकर्ता डॉ. संजय के राय ने केंद्र के इस फैसले को अवैज्ञानिक बताया है। डॉ. संजय इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को यह निर्णय लागू करने से पहले उन देशों के डाटा का विश्लेषण करना चाहिए था जो अपने यहां बच्चों का टीकाकरण शुरू कर चुके हैं। डॉ. संजय ने एक ट्वीट में कहा, ‘देश के लिए निस्वार्थ सेवा करने और सही समय पर सही फैसले लेने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। लेकिन बच्चों के टीकाकरण पर उनके अवैज्ञानिक फैसले से मुझे निराशा हुई है।’ अपने इस ट्वीट में डॉ. संजय ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को भी टैग किया।

वायरस से संक्रमण पर असर नहीं डाल रहे हैं टीके
डॉ. संजय ने कहा किसी भी दखलअंदाजी का एक स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिए। यह उद्देश्य या तो कोरोना वायरस संक्रमण को रोकना या बीमारी की गंभीरता को रोकना या मृत्यु के मामलों को रोकना है। लेकिन अभी तक हमारे पास इस जानलेवा महामारी के लिए टीकों के बारे में जो जानकारी उपलब्ध है, वह यह है कि टीके वायरस पर कुछ खास असर नहीं डाल पा रहे हैं। कुछ देशों में तो लोग कोरोना रोधी टीके की बूस्टर खुराक लेने के बाद भी इस वायरस से संक्रमित पाए जा रहे हैं।

बीमारी की गंभीरता कम करने में टीके हैं प्रभावी
उन्होंने कहा, इसके साथ ही यूके में रोजाना 50 हजार से ज्यादा संक्रमण के नए मामले सामने आ रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि टीके कोरोना वायरस संक्रमण को नहीं रोक पा रहे हैं लेकिन वो इस संक्रमण की वजह से होने वाली गंभीरता और मौत को रोकने में प्रभावी हैं। वयस्क आबादी में कोविड मृत्यु दर 1.5 फीसदी है। इसका मतलब संक्रमण के 10 लाख मामलों में करीब 15 हजार लोगों की मौत हो रही है। टीकाकरण के माध्यम से इस आंकड़े को और कम किया जा सकता है।

बच्चों के टीकाकरण से लाभ कम नुकसान ज्यादा
उन्होंने आगे कहा कि बच्चों में संक्रमण की गंभीरता बहुत कम है और आंकड़ों के अनुसार बच्चों में प्रति 10 लाख संक्रमण के मामलों में केवल दो मौत हो रही हैं। बच्चों के मामले में 15 हजार लोगों की मौत नहीं हो रही है और प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इसके खतरों और लाभ का विश्लेषण किया जाए तो सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध डाटा के अनुसार लाभ की तुलना में नुकसान अधिक हैं। बच्चों में टीकाकरण की शुरुआत करके दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो पा रही है।

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