Ambedkar Jayanti 2025: जब बेट‍ियों के अधि‍कार‍ों के ल‍िए बाबा साहेब ने ठुकरा दी थी कुर्सी, पढ़ें अनसुनी कहानी

Ambedkar Jayanti 2025 : हर साल 14 अप्रैल को पूरे भारत में डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती मनाई जाती है। इस दिन को भीम जयंती के नाम से भी जाना जाता है। डॉ. अंबेडकर ने भारतीय संविधान निर्माण में अहम योगदान दिया और वह देश के पहले कानून मंत्री भी बने थे। उन्हें पूरी दुन‍िया सम्मानपूर्वक ‘बाबा साहेब’ कहकर पुकारती हैं। यह दिन उनके संघर्षों, विचारों और समाज को दिशा देने वाले योगदान को याद करने का मौका होता है।
आपको बता दें कि बाबा साहेब का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। यहां जातिगत भेदभाव उनके जीवन का हिस्सा रहा। लेकिन उन्होंने इन चुनौतियों को अपनी ताकत बना ल‍िया। उन्‍होंने न केवल उच्च शिक्षा प्राप्त की, बल्कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से डिग्री भी हासिल की।

समानता और आत्‍मसम्‍मान के बारे में की बात

उन्होंने हमेशा समानता, न्याय और आत्म-सम्मान के बारे में बात की है। वे मानते थे कि किसी व्यक्ति का मूल्य उसके जन्म से नहीं, उसकी योग्यता और मेहनत से तय होना चाहिए। जब हमारा भारत आजाद हुआ तो देश को एक मजबूत संविधान की जरूरत थी। उस दौरान डॉ. भीमराव अंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया।

भारत के आजाद होने के बाद बने थे कानून मंत्री

उन्होंने एक ऐसा संविधान तैयार किया जिसमें सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार मिला। भारत के आजाद होने के बाद वे देश के पहले कानून मंत्री बने थे। इसके बाद भी उन्होंने सामाजिक सुधारों को आगे बढ़ाना जारी रखा। इन्हीं सुधारों में एक बड़ा कदम था- हिंदू कोड बिल। यह बिल खास तौर पर महिलाओं के अधिकारों के लिए लाया गया था।

मह‍िलाओं को बराबर का अधि‍कार द‍िलाना चाहते थे

दरअसल, बाबा साहेब चाहते थे कि आज के समय में बेट‍ियों को भी उतना ही अधि‍कार म‍िले ज‍ितना की बेटों को म‍िलता आया है। प‍िता की संपत्‍त‍ि में भी बेटि‍यों का संपूर्ण अध‍िकार हो। इसके अलावा इस बिल में विवाह, तलाक और गोद लेने से जुड़े अधिकारों पर भी नए कानूनों का प्रस्ताव था।

कैब‍िनेट ने नहीं पास क‍िया ब‍िल

हालांकि, उस समय समाज इतना तैयार नहीं था। कैबिनेट में मौजूद कई नेताओं ने इस बिल का विरोध कर द‍िया। इस ब‍िल को मंजूर ही नहीं क‍िया गया। इससे आहत होकर डॉ. अंबेडकर ने 1951 में कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनका मानना था कि अगर महिलाओं को बराबरी नहीं दी जा सकती, तो उन्‍हें इस पद पर बने रहने का कोई अध‍िकार नहीं है।

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