नई दिल्ली। भारत ने बीते 11 सालों में गरीबी खत्म करने की दिशा में बड़ी कामयाबी हासिल की है. एक सर्वेक्षण के मुताबिक, 2011-12 में गरीबी 21% से घटकर वर्ष 2022-23 में यह 8.5% तक पहुंच गई. गरीबी में कमी आने के बावजूद जीवन के आने वाले मोड़ों की वजह से फिर से इन परिवारों के गरीबी के भंवर में फंसने का खतरा बरकरार है.
थिंक टैंक एनसीएईआर के सोनाली देसाई के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों द्वारा मंगलवार को जारी किए गए एक पेपर में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी अनुपात में तेज गिरावट का अनुमान लगाया गया है – 2011-12 में 24.8% से अब 8.6% हो गया है. वहीं शहरी क्षेत्रों में यह 13.4% से घटकर 8.4% हो गया है.
एनसीएईआर पेपर में गरीबी 2011-12 में 21% से घटकर 8.5% होने की बात कही गई है. यह अनुमान एसबीआई रिसर्च से अधिक है, जिसने ग्रामीण गरीबी का अनुमान 7.2% और शहरी गरीबी का अनुमान 4.6% पर लगाने के लिए एनएसएसओ के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण का उपयोग किया था.
देसाई के पेपर में अनुमान लगाया गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्य सब्सिडी और केंद्र के साथ-साथ राज्यों द्वारा संचालित कई योजनाओं के माध्यम से अन्य लाभों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है.
हालांकि, इसने सुझाव दिया कि सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण को जीवन की परिस्थितियों, जैसे बीमारी, विवाह और प्राकृतिक आपदाओं पर अधिक ध्यान देना चाहिए, जो लोगों को सामाजिक पहचान या जन्म के क्षेत्र से जुड़ी जन्म की परिस्थितियों के बजाय गरीबी में धकेलती हैं.
2011-12 और 2022-24 के लिए IHDS डेटा का उपयोग करते हुए, पेपर ने अनुमान लगाया कि 8.5% गरीबों में से 3.2% जन्म से गरीब थे, जबकि 5.3% “जीवन की दुर्घटना” के कारण गरीब हो गए.
इस शोधपत्र ने सुरक्षा के बारे में सोचने के लिए तीन सिद्धांत सुझाए हैं, जिनमें बुनियादी सुरक्षा जाल के सीमित सेट के लिए सार्वभौमिक कार्यक्रम, जोखिम बीमा और लचीलापन और संस्थागत ढाँचा बनाना शामिल है. इसने प्रस्तावित किया कि मुख्य सेट की पहचान करना और उसे सीमित तथा पूर्ण रूप से वित्तपोषित रखना चुनौती है.