दरअसल, छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के उप प्रबंधक शैलेंद्र कुमार खम्परिया ने 26 मार्च, 2016 को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए ई-मेल के जरिए इस्तीफा दे दिया था. विभाग ने ई-मेल के जरिए भेजे गए त्यागपत्र में निर्दिष्ट तिथि का अभाव और तीन महीने का वेतन जमा करने की शर्त को पूरा नहीं करने का हवाला देकर इसे अस्वीकार कर दिया था. इसके बाद सितंबर 2016 में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया.
लेकिन इसके बाद उप महाप्रबंधक खम्परिया ने अक्टूबर 2016 में अपना इस्तीफा वापस लेने की मांग की, जिस पर निगम ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया, और इस्तीफा स्वीकार कर लिए जाने की जानकारी दी. उन्होंने निगम अफसरों के इस निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी. सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए निगम द्वारा स्वीकार किए गए त्यागपत्र को गैर कानूनी ठहराया.
सिंगल बेंच के फैसले को निगम ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी. मामले की सुनवाई के दौरान निगम की ओर से कहा गया, कि एक बार इस्तीफा स्वीकार होने के बाद कर्मचारी को इसे वापस लेने का कोई अधिकार नहीं है, भले ही स्वीकृति की सूचना ना दी गई हो.
इस पर उप महाप्रबंधक खम्परिया की ओर से तर्क दिया गया कि निगम ने शुरू में गैर-अनुपालन के कारण उनके इस्तीफे को अस्वीकार कर दिया था, और बाद में की गई इस्तीफे की स्वीकृति अमान्य थी, क्योंकि उन्होंने अपेक्षित शर्तें पूरी नहीं की थी, साथ ही तीन महीने का वेतन भी जमा नहीं किया था.
मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया कि एक बार जब इस्तीफा गैर-अनुपालन के कारण अस्वीकार कर दिया जाता है, तो संबंधित विभाग के आला अफसर पर इसे सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी बनती है कि त्यागपत्र की स्वीकृति के साथ पत्र को आगे बढ़ाने से पहले सभी शर्तें पूरी कर ली गई है या नहीं.