इस बीच विपक्षी पार्टियों ने ये अफवाह फैलानी शुरू कर दी कि सरकार ने कानून वापस तो ले लिया है मगर चुनाव के बाद वो इसे फिर से लेकर आएगी। इस तरह की तमाम अफवाहें फैलाई जाती रही। कई किसान संगठनों को इसमें कुछ सच्चाई भी लगने लगी।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार की ओर से किसानों के भले के लिए तीन कृषि कानून बनाए गए थे। सरकार का मानना था कि इस कानून से किसानों को काफी फायदा होगा मगर किसानों को ये तीनों कानून मंजूर नहीं हुए। एक साल से अधिक समय तक पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर धरना देकर प्रदर्शन किया, आखिर में इन तीनों कृषि कानूनों को पीएम नरेन्द्र मोदी ने वापस लेने की घोषणा कर दी। संसद के दोनों सदनों से इस कानून को वापस ले लिया गया।
इस बीच विपक्षी पार्टियों ने ये अफवाह फैलानी शुरू कर दी कि सरकार ने कानून वापस तो ले लिया है मगर चुनाव के बाद वो इसे फिर से लेकर आएगी। इस तरह की तमाम अफवाहें फैलाई जाती रही। कई किसान संगठनों को इसमें कुछ सच्चाई भी लगने लगी, वो विरोध के लिए तैयारी करने लगे। ये भी कहा जाने लगा कि यदि सरकार इस कानून को फिर से वापस लाई तो किसान संगठन अबकी बार उससे भी बड़े पैमाने पर प्रदर्शन करेंगे।
उधर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत शुरू से ही इन कानूनों के विरोध में रहे हैं। वो प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर किसानों को एकजुट कर चुके हैं। ये सिलसिला अभी भी जारी है। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में हुए विधानसभा चुनाव में भी राकेश टिकैत ने वहां जाकर केंद्र सरकार की कृषि कानून विरोधी नीतियों के बारे में बताया था। किसान नेताओं ने कई जगहों पर केंद्र सरकार की कृषि कानूनों की प्रतियां भी जलाई, विरोध करने के लिए अलग-अलग तरीके से मार्च भी निकाले। दिल्ली की तीनों सीमाओं पर एक साल से अधिक समय तक किसान संगठन इन्हीं कानूनों के विरोध में प्रदर्शन करते रहे। 26 जनवरी को किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकालकर दिल्ली की सड़कों पर जो उपद्रव किया वो किसी से छिपा नहीं है।