भारत में इस्लामिक शासन की मांग करने वाले संगठनों को इजाजत नहीं दे सकते, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर अपने लगातार आठवें प्रतिबंध को सही ठहाराते हुए सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दाखिल किया. इसके साथ ही केंद्र ने सिमी को ‘गैरकानूनी संगठन’ करार दिया. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि ‘कोई भी संगठन जिसका उद्देश्य भारत में इस्लामी शासन स्थापित करना है, उसे अस्तित्व में रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.’ केंद्र ने आगे कहा, उन्हें हमारे धर्मनिरपेक्ष समाज में कायम रखने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए.

केंद्र ने सिमी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका से संबंधित एक हलफनामा दायर किया है. हलफनामे पर बुधवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने विचार किया. सिमी के एक पूर्व सदस्य ने याचिका दाखिल करते हुए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गठित एक न्यायाधिकरण के 2019 के प्रतिबंध के आदेश को चुनौती दी है.

केंद्र ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया, “सिमी का मकसद देश के कानूनों के विपरीत हैं क्योंकि संगठन का उद्देश्य इस्लाम के प्रचार में छात्रों और युवाओं को जुटाना और ‘जेहाद’ के लिए समर्थन हासिल करना है.” केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि कई वर्षों तक प्रतिबंधित रहने के बावजूद, सिमी विभिन्न फ्रंट संगठनों के माध्यम से गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल रहा, इसलिए, एक नया प्रतिबंध जारी किया गया था.

केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, ‘एक छोटे समय को छोड़ दिया जाए, तो 27 सितंबर 2001 से प्रतिबंधित होने के बावजूद, सिमी के कार्यकर्ता आपस में मिल रहे हैं, बैठक कर रहे हैं, षड्यंत्र कर रहे हैं, हथियार और गोला-बारूद हासिल कर रहे हैं, और ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं जो विघटनकारी हैं और भारत की संप्रभुता और भारत की क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डालने में सकते हैं.’

केंद्र ने कहा कि सिमी कार्यकर्ता अन्य देशों में स्थित सिमी के सहयोगियों और आकाओं के नियमित संपर्क में हैं और इनकी ये कार्रवाई देश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित करने में सक्षम हैं. केंद्र ने कहा, ‘सिमी के घोषित उद्देश्य हमारे देश के कानूनों के विपरीत हैं. विशेष रूप से भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के उनके मकसद को किसी भी परिस्थिति में जीवित रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.’

यह कहते हुए कि 2001 के बाद से लगातार निर्देश के बावजूद सिमी का अस्तित्व बना हुआ है, सरकार ने बताया कि तीन दर्जन से अधिक फ्रंट संगठनों के माध्यम से सिमी अपनी गैरकानूनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा था और इसीलिए 2019 में सिमी पर पांच साल के प्रतिबंध आदेश जरूरी था. ये अलग-अलग नामों से कई राज्यों में फिर से इकट्ठा हुए थे. केंद्र ने कहा, ‘तीन दर्जन से अधिक अन्य फ्रंट संगठन हैं के माध्यम से सिमी को जारी रखा जा रहा है. ये फ्रंट संगठन विभिन्न गतिविधियों में सिमी की मदद करते हैं, जिसमें धन संग्रह, साहित्य का प्रसार, कैडर का पुनर्गठन आदि शामिल हैं.’
केंद्र ने सिमी को ‘गैरकानूनी संगठन’ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की कि समूह पर प्रतिबंध लगाने के उनके फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया जाए. गौरतलब है कि 27 सितंबर, 2001 को, केंद्र की तात्कालिक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत भारत के छात्र इस्लामी आंदोलन पर अपनी ‘राष्ट्र-विरोधी और अस्थिर करने वाली गतिविधियों’ के लिए प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी.

error: Content is protected !!