केंद्र ने सिमी पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका से संबंधित एक हलफनामा दायर किया है. हलफनामे पर बुधवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की अगुवाई वाली पीठ ने विचार किया. सिमी के एक पूर्व सदस्य ने याचिका दाखिल करते हुए गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गठित एक न्यायाधिकरण के 2019 के प्रतिबंध के आदेश को चुनौती दी है.
केंद्र ने अपने हलफनामे में आरोप लगाया, “सिमी का मकसद देश के कानूनों के विपरीत हैं क्योंकि संगठन का उद्देश्य इस्लाम के प्रचार में छात्रों और युवाओं को जुटाना और ‘जेहाद’ के लिए समर्थन हासिल करना है.” केंद्र ने इस बात पर जोर दिया कि कई वर्षों तक प्रतिबंधित रहने के बावजूद, सिमी विभिन्न फ्रंट संगठनों के माध्यम से गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल रहा, इसलिए, एक नया प्रतिबंध जारी किया गया था.
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा, ‘एक छोटे समय को छोड़ दिया जाए, तो 27 सितंबर 2001 से प्रतिबंधित होने के बावजूद, सिमी के कार्यकर्ता आपस में मिल रहे हैं, बैठक कर रहे हैं, षड्यंत्र कर रहे हैं, हथियार और गोला-बारूद हासिल कर रहे हैं, और ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं जो विघटनकारी हैं और भारत की संप्रभुता और भारत की क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डालने में सकते हैं.’
केंद्र ने कहा कि सिमी कार्यकर्ता अन्य देशों में स्थित सिमी के सहयोगियों और आकाओं के नियमित संपर्क में हैं और इनकी ये कार्रवाई देश में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित करने में सक्षम हैं. केंद्र ने कहा, ‘सिमी के घोषित उद्देश्य हमारे देश के कानूनों के विपरीत हैं. विशेष रूप से भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करने के उनके मकसद को किसी भी परिस्थिति में जीवित रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती है.’