केंद्र के टीकाकरण अभियान ने देश के नागरिकों को दो गुटों में बांट दिया है। एक गुट वह है जिनके कोविशील्ड का टीका लगाया गया है और ये लोग देश-विदेश में कहीं भी बिना रोकटोक आ और जा सकते हैं। वहीं दूसरा गुट कोवाक्सिन वाले लोगों का है, जिनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगा हुआ है। यह टिप्पणी मंगलवार को केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए की।
दरअसल, हाईकोर्ट एक ऐसे व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जो सऊदी अरब में नौकरी करता था और कोवाक्सिन लगवाने के कारण उसे वापस जाने की अनुमति नहीं मिल रही है। तीसरी बार विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कोवाक्सिन को मान्यता न मिलने के कारण व्यक्ति द्वारा हाईकोर्ट में अपील दायर की गई। व्यक्ति का कहना था कि कोवॉक्सिन को मान्यता न मिलने से उसकी नौकरी पर संकट खड़ा हो गया है।
व्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि देश में एक तरफ वे लोग हैं, जो कहीं भी आ और जा सकते हैं । जबकि, दूसरी तरफ कोवाक्सिन लगवा चुके लोग हैं, जिन पर कई प्रतिबंध हैं। कोर्ट ने कहा कि यह पूरी तरह से व्यक्ति के मौलिक अधिकारों से जुड़ा मामला है। यह उसके अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने कहा कि वह यह आदेश नहीं देगा कि केंद्र याचिकाकर्ता को तीसरी डोज दे, लेकिन यह आदेश दे सकता है कि केंद्र एक महीने के अंदर याचिकाकर्ता की समस्या का समाधान करे। उन्होंने कहा कि ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है। उस मामले में केंद्र ने कहा है कि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन की मान्यता का इंतजार कर रहे हैं। कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई पांच नवंबर को करेगा।
मूक दर्शक बनकर नहीं बैठ सकता कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि वह केवल मूक दर्शक बनकर बैठा नहीं सकता है। हमें केंद्र के जवाब का इंतजार है। अगर केंद्र इस मामले में और अधिक समय चाहती है। तो केंद्र याचिकाकर्ता को उस वेतन का भुगतान करे जो उसे सउदी अरब में मिल रहा था।