Waqf Act Supreme Court: देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बीआर गवई (BR Gawai) और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने आज, 20 मई को वक्फ ऐक्ट को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई शुरू की. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें पेश कीं, जबकि याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले की पैरवी की. इस सुनवाई के दौरान, CJI गवई ने यह स्पष्ट किया कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून में संवैधानिकता का तत्व होता है, और जब तक कोई ठोस मामला सामने नहीं आता, तब तक अदालतें इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं.
टुकड़ों में सुनवाई नहीं हो सकती
सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि न्यायालय ने तीन प्रमुख मुद्दों की पहचान की है, जिन पर उन्होंने पहले ही अपना उत्तर प्रस्तुत कर दिया है. हालांकि, याचिकाकर्ताओं की लिखित दलीलें अब कई अन्य मुद्दों तक विस्तारित हो गई हैं. उन्होंने कहा कि उन्होंने इन तीन मुद्दों के संबंध में अपना हलफनामा दाखिल किया है और अनुरोध किया कि सुनवाई इन्हीं तीन मुद्दों तक सीमित रखी जाए. दूसरी ओर, वक्फ अधिनियम, 2025 के प्रावधानों को चुनौती देने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी ने इस दलील का विरोध किया कि विभिन्न हिस्सों में सुनवाई नहीं की जा सकती.
सिब्बल की क्या दलील
सिब्बल ने कहा कि सुनवाई को टुकड़ों में नहीं किया जा सकता, इसलिए सभी मुद्दों पर एक साथ सुनवाई होनी चाहिए. उन्होंने बताया कि पहला मुद्दा अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार से संबंधित है. दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना पर है, जिसमें उनका तर्क है कि केवल मुसलमानों को ही इसमें कार्य करने की अनुमति होनी चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के. तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से जुड़ा है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह निर्धारित करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा.
केंद्र ने अंतरिम आदेश पारित करने का विरोध किया था
पिछले महीने 17 अप्रैल को, केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय को यह आश्वासन दिया था कि वह 5 मई तक ‘वक्फ बाई यूजर’ सहित वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं करेगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में किसी भी प्रकार की नियुक्ति करेगा. इसके अलावा, केंद्र ने गैर-मुस्लिमों को केंद्रीय वक्फ परिषदों और बोर्डों में शामिल करने की अनुमति देने वाले प्रावधान पर रोक लगाने के साथ-साथ ‘वक्फ बाई यूजर’ को गैर-अधिसूचित करने के खिलाफ अंतरिम आदेश पारित करने के शीर्ष अदालत के प्रस्ताव का विरोध किया.
1,332 पन्नों का प्रारंभिक हलफनामा दायर
गत 25 अप्रैल को, केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने संशोधित वक्फ अधिनियम, 2025 का समर्थन करते हुए 1,332 पन्नों का प्रारंभिक हलफनामा प्रस्तुत किया और संसद द्वारा पारित इस कानून की संवैधानिकता पर अदालत द्वारा किसी भी प्रकार की पूर्ण रोक का विरोध किया. केंद्र ने इस अधिनियम को पिछले महीने अधिसूचित किया था, जिसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की स्वीकृति प्राप्त हुई. यह विधेयक लोकसभा में 288 मतों से पारित हुआ, जबकि 232 सांसदों ने इसके खिलाफ मतदान किया. राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 सदस्यों ने अपनी राय दी.