गाय को हिंदू दर्शन में मां का सम्मान दिया गया है. शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में कहा गया है कि गोसेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता है. गाय के पैरों की धूल का भी अपना महत्व है. गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में गाय के पांवों की धूल को पाप विनाशक माना गया है. ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि गोधूलि वेला विवाह आदि मंगल कार्यों के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त है. गाय के जंगल से चरकर घर वापसी के समय को गोधूलि वेला कहा जाता है.
गाय के खुरों से उठने वाली धूल से सभी तरह के पापों का दोष खत्म हो जाता है. पंचगव्य एवं पंचामृत की महिमा तो सर्वविदित है ही. गोदान की महिमा भी सब जानते हैं. ग्रहों के दोषों के निवारण के लिए रसोई में बनने वाली पहली रोटी गौ ग्रास, जिसे अग्रासन भी कहा जाता है देने तथा गौ के दान की विधि और महत्व ज्योतिष ग्रंथों में लिखा गया है. गाय के दूध से न जाने कितनी खाद्य सामग्री बनती हैं और यहां तक कि उसका गोबर से खाद बनाने के कार्य में आता है. गोमूत्र से बहुत सी कारगर आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं.
बहुउपयोगी गाय सभी प्रकार के वास्तु दोषों को भी दूर करती है. जिस स्थान पर भवन का निर्माण करना हो, यदि वहां पर बछड़े वाली गाय को बांध दिया जाए तो उस स्थान के सभी संभावित वास्तुदोष स्वत: ही ठीक हो जाते हैं और निर्माण कार्य पूरा होने तक किसी तरह की बाधा नहीं आती है.
वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारम्भ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए, जो बछड़े वाली हो. नवजात बछड़े को जब गाय दुलार कर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले सभी दोषों का स्वतः निवारण हो जाता है.
यही मान्यता वास्तु प्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि ग्रन्थों में भी बतायी गयी है. महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि जिस स्थान पर गाय बैठकर बिना किसी डर के सांस लेती है, उस स्थान के सारे पापों को वह खींच लेती है.