आवेदकों को पुनः दस्तावेज अपलोड करने देना पड रहा है लोक सेवा केन्द्रों में अतिरिक्त शुल्क
राजनांदगांव। जिलाधीश राजनांदगांव से भेंट कर लवकुमार रामटेके अधिवक्ता छत्तीसगढ हाईकोर्ट ने रखी बाते कि छत्तीसगढ शासन की ई-डिस्ट्रिक्ट योजना का सही लाभ आवेदकों व आम जनता को नहीं मिल रहा है । हॉल ही में स्नेहलता बंसोड को जारी अनुविभागीय अधिकारी राजस्व डोंगरगढ के पत्र का हवाला दिया ।
श्री रामटेके ने बताया कि स्नेहलता बंसोड ने 4 सितम्बर 2017 को अपने जाति प्रमाण पत्र प्राप्ति हेतु लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से आवेदन किया था, जिस पर सक्षम अधिकारी ने वर्ष 1950 के पूर्व के संबंध में दस्तावेज, शिक्षा एवं सम्पत्ति संबंधी दस्तावेज की मांग करते हुए आवेदन वापस किया था । आवेदिका के आवेदन के साथ इनाबिलिटी मेमों भी अपने आवेदन के साथ जमा किया था । आवेदिका ने अपर कलेक्टर राजनांदगांव के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था जिसपर 17 मई 2018 को आदेश पारित करते हुए सक्षम अधिकारी को निर्देश दिया गया कि वे आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जॉच व परीक्षण कर नियमानुसार जाति प्रमाण पत्र जारी करें । जिसके बाद आवेदिका के 7 आवेदनों में से 3 का अस्थायी जाति प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया किन्तु अन्य शेष का नहीं किया गया । लम्बे समय तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किये जाने से पीड़िता आवेदिका ने माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत की।
माननीय उच्च न्यायालय ने 17 मई 2018 को आदेश पारित के पालन करने के निर्देश जारी किये । जिसके आधार पर आवेदिका ने पुनः कलेक्टर राजनांदगांव के समक्ष माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के पालन हेतु आवेदन किया जिसे अपर कलेक्टर राजनांदगांव के माध्यम से सक्षम प्राधिकारी/अनुविभागीय अधिकारी राजस्व डोंगरगढ को प्रकरण निराकरण हेतु भेजा गया । अनुविभागीय अधिकारी राजस्व डोंगरगढ ने आवेदिका को पत्र प्रेषित करते हुए जानकारी दी कि आपके द्वारा अपलोड किए गए सम्पूर्ण दस्तावेज वर्तमान स्थिति में ई-डिस्टीक साईड में उपलब्ध नहीं है । अतः आप लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से अपने दस्तावेज पुनः अपलोड करायें ।
अब स्थिति यह है कि जब आवेदिका यदि दस्तावेज पुनः अपलोड कराती है तो वह नया आवेदन होगा, दस्तावेज अपलोड कराने के लिये फिर से लोक सेवा केन्द्र में शुल्क देना होगा । जबकि शासन की मंशा लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से आवेदकों व आमजनों को सरल, सस्ती सेवा प्रदान करने का है । यदि ऑनलाईन आवेदन व दस्तावेज शासन की साईड में ही नहीं है तो इसमें आवेदन का क्या दोष, सक्षम प्राधिकारी को चाहिए कि वह स्वयं एनआईसी/चिप्स जो कि छत्तीसगढ शासन के ऑनलाईन काम को देखते है पत्र लिखकर अथवा अन्य माध्यम से आवेदक के द्वारा दिये गये दस्तावेज अथवा डॉटा को प्राप्त कर विधिवत् निराकर करें। इसमें आवेदन को नाहक परेशान ना किया जावें जिससे आवेदक परेशानी से बच सकंे । जहॉ तक ऑनलाईन आवेदन का सवाल है यह शासन का काम है कि वह आवेदक के आवेदन की सुरक्षा किस तरह करते है।
श्री रामटेके ने बताया कि जिलाधीश, एडीएम व चिप्स प्रमुख से चर्चा हुई जिसपर यह आवश्वासन दिया गया है कि जिन आवेदकों के आवेदन अभी तक शासन के पोर्टल पर है उनके डॉटा सक्षम प्राधिकारियों के मांग किये जाने के आधार पर वापस उपलब्ध कराये जावंेगे।
सक्षम प्राधिकारी, रीडर, लोकसेवा केन्द्र आपरेटर आवेदकों से अनावश्यक दस्तावेज अपलोड करने हेतु ना कहें बल्कि एनआईसी/चिप्स प्रमुख को पत्र प्रेषित कर आवेदन नम्बरों के अनुसार डॉटा की मॉग करें ।
श्री रामटेके ने बताया कि ऐसा हो जाने से गरीब आवेदक को बार-बार आवेदन नहीं करना पडेगा और न ही तहसील व लोकसेवा केन्द्रों के चक्कर काटने पड़ेंगे।
श्री रामटेके ने बताया कि स्नेहलता बंसोड ने 4 सितम्बर 2017 को अपने जाति प्रमाण पत्र प्राप्ति हेतु लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से आवेदन किया था, जिस पर सक्षम अधिकारी ने वर्ष 1950 के पूर्व के संबंध में दस्तावेज, शिक्षा एवं सम्पत्ति संबंधी दस्तावेज की मांग करते हुए आवेदन वापस किया था । आवेदिका के आवेदन के साथ इनाबिलिटी मेमों भी अपने आवेदन के साथ जमा किया था । आवेदिका ने अपर कलेक्टर राजनांदगांव के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया था जिसपर 17 मई 2018 को आदेश पारित करते हुए सक्षम अधिकारी को निर्देश दिया गया कि वे आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों की जॉच व परीक्षण कर नियमानुसार जाति प्रमाण पत्र जारी करें । जिसके बाद आवेदिका के 7 आवेदनों में से 3 का अस्थायी जाति प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया किन्तु अन्य शेष का नहीं किया गया । लम्बे समय तक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किये जाने से पीड़िता आवेदिका ने माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत की।
माननीय उच्च न्यायालय ने 17 मई 2018 को आदेश पारित के पालन करने के निर्देश जारी किये । जिसके आधार पर आवेदिका ने पुनः कलेक्टर राजनांदगांव के समक्ष माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के पालन हेतु आवेदन किया जिसे अपर कलेक्टर राजनांदगांव के माध्यम से सक्षम प्राधिकारी/अनुविभागीय अधिकारी राजस्व डोंगरगढ को प्रकरण निराकरण हेतु भेजा गया । अनुविभागीय अधिकारी राजस्व डोंगरगढ ने आवेदिका को पत्र प्रेषित करते हुए जानकारी दी कि आपके द्वारा अपलोड किए गए सम्पूर्ण दस्तावेज वर्तमान स्थिति में ई-डिस्टीक साईड में उपलब्ध नहीं है । अतः आप लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से अपने दस्तावेज पुनः अपलोड करायें ।
अब स्थिति यह है कि जब आवेदिका यदि दस्तावेज पुनः अपलोड कराती है तो वह नया आवेदन होगा, दस्तावेज अपलोड कराने के लिये फिर से लोक सेवा केन्द्र में शुल्क देना होगा । जबकि शासन की मंशा लोक सेवा केन्द्र के माध्यम से आवेदकों व आमजनों को सरल, सस्ती सेवा प्रदान करने का है । यदि ऑनलाईन आवेदन व दस्तावेज शासन की साईड में ही नहीं है तो इसमें आवेदन का क्या दोष, सक्षम प्राधिकारी को चाहिए कि वह स्वयं एनआईसी/चिप्स जो कि छत्तीसगढ शासन के ऑनलाईन काम को देखते है पत्र लिखकर अथवा अन्य माध्यम से आवेदक के द्वारा दिये गये दस्तावेज अथवा डॉटा को प्राप्त कर विधिवत् निराकर करें। इसमें आवेदन को नाहक परेशान ना किया जावें जिससे आवेदक परेशानी से बच सकंे । जहॉ तक ऑनलाईन आवेदन का सवाल है यह शासन का काम है कि वह आवेदक के आवेदन की सुरक्षा किस तरह करते है।
श्री रामटेके ने बताया कि जिलाधीश, एडीएम व चिप्स प्रमुख से चर्चा हुई जिसपर यह आवश्वासन दिया गया है कि जिन आवेदकों के आवेदन अभी तक शासन के पोर्टल पर है उनके डॉटा सक्षम प्राधिकारियों के मांग किये जाने के आधार पर वापस उपलब्ध कराये जावंेगे।
सक्षम प्राधिकारी, रीडर, लोकसेवा केन्द्र आपरेटर आवेदकों से अनावश्यक दस्तावेज अपलोड करने हेतु ना कहें बल्कि एनआईसी/चिप्स प्रमुख को पत्र प्रेषित कर आवेदन नम्बरों के अनुसार डॉटा की मॉग करें ।
श्री रामटेके ने बताया कि ऐसा हो जाने से गरीब आवेदक को बार-बार आवेदन नहीं करना पडेगा और न ही तहसील व लोकसेवा केन्द्रों के चक्कर काटने पड़ेंगे।