“धर्मायतन” से राष्ट्र तथा धर्म की पहचान होती है: मुनि श्री समतासागर

राजनंदगांव। दि. जैन मंदिर परिसर में धर्मसभा को सम्वोधित करते हुये निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर महाराज ने जैनधर्म का इतिहास बताते हुये कहा कि  सन् 1925 में “मोहन जोदड़ो और हड़प्पा” की खुदाई हुई और उस खुदाई में जो अवशेष मिले उसमें योग मुद्रा तथा कायोत्सर्ग मुद्रा के भित्तिचित्र दिखे उससे यह सिद्ध हुआ कि भारतीय संस्कृति धर्म प्रधान संस्कृति रही है और उस संस्कृति में जैन संस्कृति का विशेष स्थान रहा है। “धर्मायतन” से राष्ट्र तथा धर्म की पहचान होती है। ” उन्होनें कहा कि भले ही जैनियों की संख्या बहुत  कम रही हो लेकिन हमारे पूर्वजों ने जो काम देश और दुनिया के लिये किया उससे आज भी हम सभी लोगों की पहचान पूरी दुनिया में विशेष रूप से बनी हुई है। उन्होंने कहा कि जैन मुनियों की चर्या और जैन धर्म का मार्ग कोई आज – कल का मार्ग नही है यह तो भगवान ऋषभदेव के काल से चला आ रहा है। हां इतना अवश्य हुआ है कि इस युग में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज हुये जिन्होंने  श्रमण संस्कृति को एक नई पहचान देकर समाज को जीवंत किया तथा नई पीढी में जो युवा धर्म से दूर रहते थे उनको धर्म से जोड़ा। उन्होंने कहा कि समाज का कोई “धर्मायतन” से सारी समाज एक रहती है| यहाँ से विचारों का संग्रह करने का केंद्र होता है इसलिये प्रत्येक परिवार को इसे अपना मानकर इससे जुड़ना चाहिये| जिनबिम्ब और जिनायतन आपकी अपनी पहचान है तथा आपके सबसे बड़े सूचना केंद्र है। इसमें आने वाले  सभी श्रद्धालुओं को अनुशासन के साथ – साथ कर्तव्य का भी पालन करना चाहिये,  इससे आपकी विशुद्धि बड़ती है।

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