जगदलपुर। होइ है वही राम रचि राखा…। प्रभु रामजी ने जो रच दिया, आखिर में होना वही है। रामजन्मभूमि अयोध्या धाम में प्रभु श्रीराम के बाल विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा के अवसर पर बस्तर के सुदूर गांव में यह बात सच भी हो गई। प्रभुजी के अद्भुत, अलौकिक चमत्कार से नवजात बच्ची ने काल को परास्त कर जीवन की लड़ाई जीत ली, जबकि उसे जन्म देने वाली जननी ही उसे मारने का प्रयास कर रही थी।
शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद प्रभु रामजी पौष शुक्ल द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में रामजन्मभूमि में बने भव्य और दिव्य घर में विराजमान हो गए हैं। इस शुभ दिन को अविस्मरणीय बनाने देशभर में सैकड़ों दंपती ने अपने बच्चों को जन्म देने के लिए चुना, पर बस्तर के तोकापाल के बारुपाटा गांव में 22 जनवरी की रात 11 बजे जन्मे नवजात को जननी ने मारने का निर्णय ले लिया।
पिता ने मां और बच्चे को अपनाने से किया इनकार
इस कारण से क्योंकि उसके पिता ने मां और बच्चे को अपनाने से मनाकर दिया था। रात के अंधरे में उसकी मां नवजात को गांव के पास स्थित नीलगिरी के जंगल में एक चूहे के खोदे गए गड्ढे में डालकर उसे मिट्टी से पाट दिया। वह बच्ची को मारने के सभी यत्न पूरे कर आई, पर प्रभु रामजी की इच्छा के आगे किस की चलती है?
मंगलवार सुबह गांव के सरपंच पति मनीष बेंजाम नीलगिरी के जंगल की ओर गए तो उनके कानों में बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। उन्होंने बच्चे को चूहे के बिल से निकालकर एंबुलेंस को बुलाया। 108 की आपातकालीन सेवा कुछ ही देर बाद गांव पहुंची।
108 के चिकित्सा कर्मी भानुप्रिया व भूपेंद्र कुमार ने बच्चे की गंभीर अवस्था का देखकर घटनास्थल पर ही प्राथमिक उपचार कर तोकापाल स्थित स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया, जहां चिकित्सकों ने बच्ची का उपचार किया। बच्ची अब पूरी तरह से स्वस्थ है।