उत्तराखंड में एवलांच और बादल फटने की घटनाओं ने बढ़ाई चिंता, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह

 

देहरादून. देश के कई राज्यों में बारिश का दौर जारी है. उत्तराखंड में भी लगातार भारी हो रही है. बारिश का महीना गुजर जाने के बाद भी अप्रत्याशित बारिश ने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है. अक्टूबर के महीने तक हो रही बारिश, भले ही वेस्टर्न डिस्टर्बेन्स या मॉनसून विड्रॉल बताई जा रही हो, लेकिन मौसम में आ रहे बदलाव का कारण वैज्ञानिक, क्लाइमेट चेन्ज को बता रहे हैं. जिसके पीछे बड़ी वजह प्रदूषण और पेड़ की अंधाधुंध कटाई है.

सोशल मीडिया पर केदारनाथ के पास आये एवलांच के वीडियो आपको ध्यान होंगे, जिन्होने देशभर में सुर्खियां बटोरी थी. वहीं पिछले कुछ सालों में आराकोट आपदा, रैणी आपदा और इसी साल आई मालदेवता की आपदा भी ज्यादा बारिश की वजह से हुई. वैज्ञानिकों का मानना है कि गाड़ियों का ज्यादा इस्तेमाल प्रदूषण को बढ़ाता है. ऊपर से पिछले कुछ सालों में पेड़ों का कटान भी ज्यादा हुआ है. जिस वजह से मौसम में बदलाव हो रहे हैं.

मौसम में तेजी से हो रहा परिवर्तन
अब, पहले की अपेक्षा देर तक बारिश, गर्मी और सर्दियों का सिलसिला रहता है. एवलांच जैसे सिस्टम भी बनते हैं. सुशील कुमार, पूर्व वैज्ञानिक, वाडिया इंस्टिट्यूट कहते है कि बार बार भूकंप के झटके, एवलांच, देर तक किसी भी वेदर सिस्टम का चलना मौसम में बदलाव, ये सब जलवायु परिवर्तन के नतीजे हैं. वहीं वैज्ञानिक मनमोहन सिंह रावत (यू-कॉस्ट) कहते हैं कि आपदा, आराकोट आपदा , और क्लाउड बर्स्ट जैसे घटनाक्रम पिछले कुछ सालों में बढ़ गए हैं. ये जीवन शैली में बदलाव और प्रकृति से छेड़छाड़ के नतीजे हैं.

जलवायु परिवर्तन से चिंता में वैज्ञानिक
आपदा प्रबधंन प्राधिकरण के अधिकारी भी मानते हैं कि हाल के दिनों में क्लाउड ब्रस्ट्र जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं. हालांकि एवलांच का आना भी जरूरी है लेकिन स्टडी में पाया जा रहा है कि मौसम में बदलाव प्रमुख कारण है. अब मौसम के यह बदलाव अपने साथ कई दुष्परिणाम भी दिखा रहे हैं, जो वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ाने लगी है. वैज्ञानिक लगातार जलवायु परिवर्तन पर नजर बनाए हुए हैं. कई वैज्ञानिकों ने हिदायत भी दी है कि प्रकृति से छेड़छाड़ महंगा पड़ सकता. वैज्ञानिकों ने पेड़ों की कम कटाई के साथ वृक्षारोपण और प्रदूषण कम करने की अपील की है.

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