International Day Of Abolition For Slavery: जानें अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस क्यों मनाया जाता है

 

पूरे विश्व से दास प्रथा को समाप्त करने के लिए हर साल 2 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस (International Day Of Abolition For Slavery) मनाया जाता है. पुराने समय से चली आ रही दास प्रथा आज भी किसी न किसी रूप में बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र ने हर साल 2 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस मनाने की घोषणा की गई. मानव तस्करी और प्रॉस्टीट्यूशन को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र जनरल एसेम्बली की तरफ से प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें 2 दिसंबर को दास प्रथा उन्मूलन दिवस मनाने का ऐलान हुआ.

थीम
इस दिन की मुख्य थीम गुलामी के वर्तमान स्वरूपों को समाप्त करना है. इसमें इंसानों की तस्करी, यौन शोषण, बाल श्रम, जबरन शादी, हथियारों की स्पर्धा में बच्चों पर दबाव डालकर उनकी भर्ती करना आदि चीजें शामिल हैं. ये सभी रूप आधुनिक युग में दास प्रथा के प्रतीक हैं.

दास प्रथा उन्मूलन दिवस का बैकग्राउंड
संयुक्त राष्ट्र जनरल असेम्बली में 2 दिसंबर 1949 को एक संकल्प पारित हुआ, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस को अडॉप्ट किया गया. इसमें मुख्य उद्देश्य मानव तस्करी रोकना और वेश्यावृति को रोकना था. दोनों को दासता का प्रतीक मानते हुए रेजोल्यूशन 317 (IV) पारित किया गया. यूनाइटेड नेशंस के अनुसार अनुमानित 40.3 मिलियन लोग आधुनिक दासता के शिकार हैं. जिनमें श्रम में 24.9 और जबरन विवाह में 15.4 मिलियन लोग शामिल हैं. सबसे खास बात यह है कि आधुनिक गुलामी के शिकार हर 4 लोगों में से 1 बच्चा है.

महत्व
बंधुआ मजदूरों की तरह जीवन बिताने वाले बच्चों को मुख्य धारा में लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा उन्मूलन दिवस से जागरूकता लाना अहम है. बच्चों और अभिभावकों को इस बारे में बताकर इसे रोकने के उपाय किए जा सकते हैं. इसके अलावा काम के नाम पर यौन शोषण का शिकार होने वाली महिलाओं का शोषण रोकने के लिए भी इस दिन की अहमियत है. महिला वर्ग और बच्चों को साधारण जीवन देने के लिए अंतरराष्ट्रीय दास प्रथा के माध्यम से कार्यक्रमों का आयोजन कर इसे रोकने का सतत प्रयास करना जरूरी है.
दास प्रथा उन्मूलन दिवस मनाने का तरीका
इस दिन बुद्धिजीवी अपने रिसर्च और डेटा को संगोष्ठियों में प्रस्तूत करते हैं और लोग अपने-अपने तरीके से लेखन सामग्री के माध्यम से विचार प्रकट करते हैं. समय के साथ दास प्रथा को कैसे रोकना चाहिए, उस पर बातचीत और समीक्षा सत्र आयोजित किये जाते हैं. बहस और वाद-विवाद के अलावा लोगों को जागरूक करने के लिए भाषण और स्पीच सेशन आयोजित होते हैं. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.DAINIK PAHUNA इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.)

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