विवाह के लिए पुजारी का होना जरूरी नहीं, जानें आखिर किस फैसले पर SC ने की यह टिप्पणी

नई द‍िल्‍ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के उस फैसले को लेकर नया आदेश जारी क‍िया है क‍ि ज‍िसमें कहा गया था कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) के तहत अजनबियों के सामने छिपकर की गई शादी वैध नहीं है. इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ और स्‍पष्‍ट क‍िया है क‍ि शादी एक साधारण समारोह (Marriage Ceremony) के माध्यम से की जा सकती है जहां दूल्हा और दुल्हन वकील के चैंबर में एक-दूसरे को माला और अंगूठी पहना सकते हैं. दोनों एक दूसरे को स्‍वीकार करने में किसी भी भाषा, प्रथा, रस्म या अभिव्यक्ति को अपनाएं वो सामाजिक और कानूनी तौर पर मान्य है.

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट और अरविंद कुमार की पीठ ने कहा क‍ि विवाह अधिनियम की धारा 7(ए) के तहत वकील/ मित्र/रिश्तेदार/सामाजिक कार्यकर्ता आदि विवाह करा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने अपने फैसले में तमिलनाडु में 1967 से प्रचलित स्वाभिमान विवाह कानून पर भी अपनी मान्यता की मुहर लगा दी.

अनुच्छेद 7-ए में कहा गया है कि रिश्तेदारों, दोस्तों या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में दो हिंदुओं के बीच किया गया कोई भी विवाह वैध है. प्रावधान इस बात पर बल देता है क‍ि वैध विवाह के लिए पुजारी की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के 5 मई, 2023 के आदेश के खिलाफ दायर याचिका स्वीकार कर ली, जिसमें नाबालिग लड़की की शादी कराने वाले वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी.
पीठ ने यह भी कहा कि ये कानून उन जोड़ों की मदद कर सकता है जो सामाजिक विरोध या खतरे की वजह से अपने विवाह को गोपनीय रखना चाहते हैं. शादी विवाह के लिए समारोह होना, तय विधि पूरी करना या फिर विवाह की सार्वजनिक घोषणा किया जाना आवश्यक नहीं है.

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