कास्ट: नुसरत भरूचा, अनुद सिंह ढाका, टीनू आनंद, विजय राज, ब्रजेन्द्र काला, पारितोष त्रिपाठी, ईशान मिश्रा आदि
निर्देशक: जय बसंतु सिंह
स्टार रेटिंग: 3
कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में
यूं हिंदी सिनेमा में कॉन्डम की कहानी शायद शेखर सुमन से शुरू होती है, उनकी फिल्म उत्सव से. हिंदी सिनेमा के इस सीन से पहली बार रूबरू होने वाली पीढ़ी आज तक उस सीन को नहीं भूली है कि कैसे शेखर सुमन मेडिकल स्टोर से कॉन्डम लेने जाते हैं और शर्माते शर्माते 10 तरह के बहाने बनाते हैं. उन दिनों इस सीन को मूवी मे डालना वाकई में बहादुरी का काम रहा होगा, लेकिन आज के दौर में ये सीन किसी लड़की पर फिल्माया जाए तो शायद आपको बहादुरी लगे, लेकिन लड़की खरीदने के बजाय बेचने जाए तो? तो ये आइडिया की ओवरडोज भी हो सकती है.
आइडिया और सोशल मैसेज बेहतरीन
‘जनहित में जारी’ (Janhit Mein Jari) मूवी का प्लॉट इसी आइडिया के इर्दगिर्द रचा गया है. हालांकि पिछले साल ही इसी आइडिया पर एक और मूवी आ चुकी है, अपारशक्ति खुराना और प्रनूतन बहल की ‘हेलमेट’. हेलमेट की कहानी में दो दोस्त इलेक्ट्रॉनिक गुड्स से भरा एक ट्रक लूटते हैं, लेकिन उसमें कॉन्डम भरे हुए थे. ऐसे में पैसे कमाने के लिए उन्हें वही कॉन्डम मजबूरी में बेचने पड़ते हैं, हेलमेट लगाकर ताकि कोई उन्हें पहचानकर जेल ना भेज दे. सो मजबूरी थोड़ी कन्विन्सिंग लगती है.
जनहित में जारी का आइडिया और सोशल मैसेज दोनों ही काफी अच्छा है, लेकिन एक ही माइनस प्वॉइंट इसे पहले स्टेशन से पहले ही पटरी से उतार सकता है और वो है कन्विन्सिंग ना होना. लड़की कॉन्डम बेचने के लिए जिस वचह से तैयार होती है, उसके लिए बस 3 सेकंड परेशान होती है, यानी शादी हो जाएगी. लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है, उसके घर में वो इतनी दबंग है कि उसकी जबरन शादी की कोई सोच ही नहीं सकता. छांट कर उसके पिता का रोल एक दब्बू का और मां का रोल एक फनी लेडी का रखा गया है. इसी वजह से मूवी जितनी बेहतरीन हो सकती थी, वैसी नहीं हो पाई.
ये प्वाइंट जरूर खटकेगा
इस मूवी की कहानी थोड़ा विस्तार से समझिए, कहानी है मनोकामना (नुसरत भरूचा) और मनोरंजन (अनुद सिंह ढाका) की. अनुद सिंह को आप सुपर 30, करीब करीब सिंगल और छिछोरे में देख चुके हैं. लेकिन इस मूवी में वो मेल लीड में हैं, हालांकि मूवी नुसरत भरूचा के ही इर्द गिर्द घूमती है. दोनों एमपी के एक छोटे शहर चंदेरी में रहते हैं. मनोरंजन रामलीला, माता का जगराता में एक्टिंग कर, गाने गा गुजारा करता है और मनोकामना को शादी से बचने के लिए नौकरी चाहिए और वो लिटिल अम्ब्रेला कम्पनी में बिना ये पता किए कि कंपनी क्या प्रोडक्ट बनाती है, उसका जॉब प्रोफाइल क्या होगा, जॉब ज्वॉइन कर लेती है.
ये सबसे कमजोर प्वॉइंट था मूवी का, फिल्म के प्रोडयूसर और राइटर राज शांडिल्य लम्बे समय तक कपिल शर्मा के शो के राइटर रह चुके हैं और वो ये भूल जाते हैं कि कपिल के शो में जैसे कुछ भी बिना कन्विन्स किए चल जाता है, बड़े परदे पर भी हो जाएगा. ऐसा नहीं होता, छोटे शहर में कॉन्डोम की कम्पनी हो, यही बड़ी बात है, फिर उसमें कोई लड़की काम करने को तैयार हो जाए, वो भी दुकान दुकान जाकर बेचे, और किसी को क्या, उसके घर में भी पता ना चले, ये मुमकिन नहीं. लेकिन इस मूवी में ऐसा ही होता है. एक दिन शादी के बाद उसके ससुराल वालों को भी पता चल जाता है.
तो मनोकामना नौकरी छोड़कर दूसरी नौकरी पकड़ लेती है, लेकिन अगली बार एक दुर्घटना के बाद महिलाओं को जागरूक करने के लिए वह फिर से कॉन्डम बेचने वाली जॉब को ही करने लगती है, तब होता है घर में क्लेश. कैसे वह निपटती है, यही है कहानी.
नहीं होंगे बिल्कुल बोर
मूवी का सबसे बेहतरीन प्वॉइंट है उसके डायलॉग्स, कास्ट सलेक्शन और सिचुएशनल कॉमेडी. शायद ही कोई कॉमेडी सीन होगा, जिसमें आप हंसे बिना रह पाएं, हर डायलॉग पर मेहनत हुई है, एक से बढ़कर एक मारक कमेंट्स हैं, सो आधी मूवी में आप हंसेंगे ये तय है. बाकी कलाकार भी ऐसे चुन चुनकर लिए गए हैं कि आप बोर नहीं होंगे, टीनू आनंद, विजय राज, ब्रजेन्द्र काला, पारितोष त्रिपाठी, ईशान मिश्रा आदि.
किसी भी कलाकार के हिस्से में कोई ना कोई अलग से कॉमेडी सीन आ जाए, इसके लिए कई सारे सींस अलग से रचे गए हैं और उन्हें स्टोरी में गुंथा गया है. लेकिन इंटरवल के बाद कहानी अचानक से एक सोशल टर्न ले लेती है. अब तक मजाक चल रहा था, उसमें हीरोइन एकदम सीरियस मोड में आ जाती है और फिर से कॉन्डम बेचने निकल जाती है, लेकिन इस बार एक मिशन के साथ. जो शुरू में उतना पता भी नहीं क्योंकि सोसायटी में उस मिशन को किसी ने उठाने की जरूरत ही नहीं समझी. ऐसे में लोग अगर उस मिशन से कन्विन्स नहीं हुए तो थोड़ी मुश्किल होगी.
हर तरह का लगाया गया तड़का
तो मूवी में कॉमेडी है, पंच है, इमोशन है, मिशन है, उम्दा कलाकार हैं, कई मशहूर टीवी सीरियल्स डायरेक्टर कर चुके डायरेक्टर भी हैं, कपिल शर्मा का शो, ड्रीम गर्ल और भूमि जैसी फिल्में लिख चुके राज शांडिल्य भी, गाने भी धवनी भानुशाली, जावेद अली, रफ्तार और अमित गुप्ता जैसे गायकों ने गाए हैं. अमित गुप्ता का गाना राधे राधे राधे अभी बहुत लोकप्रिय हुआ है, इस मूवी में उनका होली पर गाया एक गाना अच्छा बन पड़ा है.
बेहतरीन पैकेज
कुल मिलाकर एक अच्छा पैकेज है, लेकिन साथ में ये रिस्की एक्सपेंरीमेंट भी, क्योंकि ऐसी मूवी को कोई बच्चों के साथ नहीं देखना चाहेगा, छोटे शहर में इस तरह का प्लॉट कन्विन्सिंग भी नहीं लगा है. लेकिन डायलॉग्स, पंच और एक्टिंग के लेवल पर ये मूवी किसी से भी कम नहीं है. अनुद सिंह ढाका की एंट्री भी जोरदार है और एक्टिंग भी, लेकिन उनके हल्की कद काठी को ध्यान में रखते हुए शाहरुख खान की तरह लो एंगल कैमरा से शूट करवाना चाहिए. हालांकि विजय राज धीरे धीरे कॉमेडी के खोल से आगे निकलकर कुछ अच्छे विलेन वाले रोल कर रहे हैं, जो लोगों को पसंद भी आ रहे हैं, टीनू आनंद ने फिर से चौंकाया है. सो गेंद अब दर्शकों के पाले में है कि वो इस एक्सपेरिमेंट को पसंद भी करते हैं कि नहीं.