मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने कहा कि किसी बच्चे की संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करने से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है. पीठ ने के एस पुट्टास्वामी मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का जिक्र किया और कहा कि सरकार का सर्कुलर पहली नजर में संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत हैं. इसलिए, न्यायालय की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिन्होंने पहले सर्कुलर पर रोक लगा दी थी.
पीठ ने यह भी कहा कि एकल न्यायाधीश ने अभी तक मामले पर अंतिम विचार नहीं किया है. इसलिए, खंडपीठ ने अपनी राय नहीं दी. साथ ही आधार की अनिवार्यता को खारिज कर दिया. सर्कुलर को चुनौती देने वाली याचिका 5 वर्षीय बच्चे के पिता द्वारा दायर की गई है. एकल न्यायाधीश ने कहा कि किसी बच्चे को आधार कार्ड रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और यदि वे अपना आधार प्रस्तुत करके पहचान स्थापित करने में विफल रहते हैं तो उन्हें किसी भी सब्सिडी या लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है.
दिल्ली सरकार ने इस आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि एकल न्यायाधीश सर्कुलर के पीछे के इरादे और उद्देश्यों को पर्याप्त रूप से समझने में विफल रहे हैं. आधार कार्ड या आधार संख्या की आवश्यकता एक व्यावहारिक उद्देश्य को पूरा करती है क्योंकि इसका उद्देश्य डुप्लिकेट आवेदनों को खत्म करना है. सरकार ने तर्क दिया कि यह निजी, गैर सहायता प्राप्त, मान्यता प्राप्त स्कूलों में प्रवेश स्तर की कक्षाओं में ईडब्ल्यूएस/डीजी श्रेणी के लिए प्रवेश प्रक्रिया को आधुनिक बनाने के लिए बनाई गई एक नीतिगत पहल है.
इसमें कहा गया है कि बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत आधार को अनिवार्य करना बच्चे के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है. बल्कि, यह फर्जी पहचान के आधार पर धोखाधड़ी वाले आवेदनों और प्रवेशों के खिलाफ सुरक्षा के रूप में कार्य करता है.सरकार ने आगे कहा कि उसका आवेदकों की गोपनीयता या सुरक्षा से समझौता करने का कोई इरादा नहीं है. वह सीधे आधार डेटाबेस तक नहीं पहुंच रही है. इसलिए, निजता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं है.हालांकि, खंडपीठ ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और अपील खारिज कर दी. स्थायी वकील संतोष कुमार त्रिपाठी के साथ अधिवक्ता अरुण पंवार, प्रद्युम्न राव, उत्कर्ष सिंह, कार्तिक शर्मा, प्रशंसा शर्मा और ऋषभ श्रीवास्तव ने दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व किया. बच्चे के पिता की तरफ से वकील आयुष अग्रवाल और ऑरित्रो मुखर्जी पेश हुए.