नई दिल्ली. देश में स्टार्टअप कल्चर तेजी से बढ़ रहा है और कई युवा नौकरी छोड़कर बिजनेस की ओर रूख कर रहे हैं. कई युवाओं ने इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेज यानी IAS की नौकरी छोड़कर बिजनेस शुरू कर दिया. हम आपको एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्होंने 60 साल पहले UPSC एग्जाम में टॉप किया और फिर कई वर्षों तक IAS अधिकारी के तौर पर अपनी सेवाएं देने के बाद नौकरी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने देश की दिग्गज वाहन निर्माता कंपनी मारूति सुजुकी की बागडोर संभाली.
हाल ही में देश में सबसे ज्यादा बिकने वाली मारुति सुजुकी ने इतिहास रच दिया है. यह कंपनी देश की पहली ऐसी ऑटोमेकर कंपनी बन गई है जिसने 1 लाख करोड़ के रेवेन्यू को पार कर लिया है. इस कामयाबी का श्रेय जाता है मारूति सुजुकी के चेयरमैन आर सी भार्गव को. मारुति सुजुकी के लिए प्रतिष्ठित सरकारी नौकरी छोड़ने वाले पूर्व आईएएस अधिकारी आरसी भार्गव वह व्यक्ति हैं जिन्होंने असंभव को संभव बनाया.
मारूति की सफलता के पीछे आर सी भार्गव
जापान की सुजुकी कंपनी के मालिक ओसामु सुजुकी ने 2015 में दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर आर सी भार्गव नहीं होते तो कंपनी सफल नहीं होती. वे भारत में मारूति सुजुकी की सफलता के लिए ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे, जो बेहतर निर्णय लेने की क्षमता रखता हो. दरअसल 1982 में भारत सरकार मारूति सुजुकी के ज्वाइंट वेंचर के लिए एक भागीदार चाहती थी. ताकि देश के लोगों को कारें किफायती दर पर उपलब्ध हो सकें.
इसके लिए सरकार ने वी कृष्णमूर्ति और आरसी भार्गव को यह कठिन काम सौंपा. क्योंकि उस समय, किसी भी विदेशी कंपनी ने सरकार के साथ साझेदारी करने में तत्परता नहीं दिखाई थी. इसके बाद वी कृष्णमूर्ति और आरसी भार्गव दोनों सुज़ुकी के मालिक से मिलने गए, जिसने अपने सलाहकारों की अच्छी सलाह के खिलाफ जाते हुए इस प्रोजेक्ट के लिए मंजूरी दे दी.ऑटो सेक्टर से जुड़े एक्सपर्ट्स मारुति की सफलता का श्रेय लागत कम रखने की उसकी क्षमता को देते हैं और इसका क्रेडिट आर सी भार्गव को जाता है.
1956 में UPSC एग्जाम टॉप किया
आरसी भार्गव की शुरुआती पढ़ाई मशहूर दून स्कूल से हुई. 1950 में उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने देश की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाने वाली यूपीएससी एग्जाम में टॉप किया और 1956 बैच के आईएएस अधिकारी बने. बतौर आईएएस अधिकारी उन्हें यूपी कैडर मिला, जहां उन्होंने कई पदों पर अपनी सेवाएं दीं. उनके काम और प्रशासनिक कौशल से से प्रभावित होकर कृष्णमूर्ति ने उन्हें मारुति में शामिल होने की पेशकश की.
मारूति के साथ काम करने के लिए छोड़ दी IAS की नौकरी
डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद 1981 में आर सी भार्गव मारुति में शामिल हुए. वह कंपनी के केवल तीसरे कर्मचारी थे. वह प्रशासनिक सेवा से 1 साल की प्रतिनियुक्ति पर मारूति में आए थे, लेकिन इसके बाद सरकार ने उनकी प्रतिनियुक्ति को बढ़ाने से इनकार कर दिया. ऐसे समय में उनके पास विकल्प था कि या तो वे आईएएस की नौकरी छोड़ दें या अपनी कंपनी को छोड़ दें. लेकिन उन्होंने अपने दिल की सुनी और आईएएस अधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया. हैरानी की बात है कि उनके पास कैबिनेट सचिव बनने का मौका था, जो भारत का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी होता है. उन्होंने फिर भी इस्तीफा दे दिया. कहा जाता है कि इस फैसले की एक वजह उनका कम वेतन भी था. क्योंकि उस समय आईएएस अधिकारियों को दी जाने वाली सैलरी काफी कम होती थी.
जिस समय आर सी भार्गव ने IAS की नौकरी छोड़ी, उस समय उनकी आयु 48 साल थी. उनका वेतन 2250 रुपये था. इसके बाद वे मारूति सुजुकी ज्वाइंट वेंचर के फुल टाइम डायरेक्टर बन गए. कृष्णमूर्ति के बाद 1985 में आर सी भार्गव कंपनी के प्रबंध निदेशक बने और 1997 में रिटायर हुए. हालांकि, 88 वर्षीय आर सी भार्गव अब भी कंपनी के चेयरमैन हैं. आर सी भार्गव का वार्षिक वेतन 1.5 करोड़ रुपये है. 2017 में उन्हें बतौर सैलरी 99 लाख रुपये मिले थे.