ओमिक्रॉन: डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले हवा में 70 गुना तेजी से फैलता है ओमिक्रॉन, लेकिन खतरनाक नहीं, जानें क्यों?

कोरोनावायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट ने पूरी दुनिया में कहर मचाना शुरू कर दिया है। खासकर ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोप में तो इस वैरिएंट की वजह से कोरोना की एक और लहर आने का खतरा मंडराने लगा है। ब्रिटेन में पिछले एक दिन में कोरोना के अब तक के सबसे ज्यादा 88 हजार नए केस दर्ज किए गए हैं, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 1.44 लाख के करीब रहा। हालांकि, जहां तक मौतों की बात है, तो दोनों देशों में ओमिक्रॉन पाए जाने के बाद मौतों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा नहीं हुआ है। ब्रिटेन में पिछले एक दिन में मौतों का आंकड़ा 146 दर्ज किया गया, जबकि अमेरिका में गुरुवार को एक हजार से कम मौतें रिकॉर्ड हुई हैं।

ऐसे में पूरी दुनिया में इस वैरिएंट से होने वाले संक्रमण की गंभीरता को लेकर सवाल जारी हैं। दक्षिण अफ्रीका, ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमिक्रॉन ज्यादा जानलेवा नहीं है, लेकिन इन तीनों ही देशों की ओर से ओमिक्रॉन के जानलेवा न होने की कोई रिसर्च पेश नहीं की गई। अब यह काम किया है हॉन्गकॉन्ग की यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने। अमर उजाला आपको बता रहा है कि ओमिक्रॉन की ताजा स्टडी में क्या बातें सामने आई हैं और यह किस हद तक घातक साबित हो सकता है।

ओमिक्रॉन की ताजा स्टडी में क्या?
हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी की ओर से की गई रिसर्च में सामने आया है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट कोरोना के डेल्टा स्वरूप के मुकाबले हवा में 70 गुना तेजी से बढ़ता है। यह वैरिएंट हवा में ही खुद की नकल तैयार कर लेता है और फिर तेजी से लोगों को संक्रमित करता है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यही वजह है कि कोरोना का यह वैरिएंट ज्यादा संक्रामक है और यह तेजी से अलग-अलग देशों में फैल रहा है।

इंसानों पर इसका असर क्या?
चूंकि ओमिक्रॉन वैरिएंट डेल्टा के मुकाबले हवा में 70 गुना तेजी से बढ़ता है, इसलिए इसकी प्रसार गति काफी तेज है। लेकिन यह लोगों को डेल्टा वैरिएंट की तरह बीमार क्यों नहीं कर रहा, इसके लिए हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने एक खास एक्सपेरिमेंट किया। वैज्ञानिकों ने एक लैब में फेफड़ों की कोशिकाओं को कोरोना की आधारभूत स्ट्रेन (चीन के वुहान में पाए गए वैरिएंट) के सामने रख दिया। इसके अलावा फेफड़े की कोशिकाओं को दो और वैरिएंट्स से संक्रमित किया गया, ताकि कोरोना के सभी स्वरूपों की संक्रमण क्षमता को परखा जा सके।

इस एक्सपेरिमेंट में सामने आया कि

– ओमिक्रॉन वैरिएंट ब्रॉन्कस (Bronchus) यानी फेफड़ों और श्वास नली को जोड़ने वाली नली में खुद को तेजी से बढ़ाता है।
– यानी ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों के गले के पास वायरल लोड काफी ज्यादा रहता है और जब वे खांसते-छींकते या जोर से सांस भी छोड़ते हैं तो वायरस उनके मुंह से बाहर आता है।
– इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि दूसरे वैरिएंट के मुकाबले ओमिक्रॉन से संक्रमित लोग कोरोना ज्यादा तेजी से फैलाते हैं।

– उधर ओमिक्रॉन के उलट डेल्टा वैरिएंट को लोगों के फेफड़ों में ज्यादा तेजी से बढ़ते पाया गया। फेफड़ों में वायरस के तेजी से बढ़ने का मतलब है कि यह वैरिएंट लोगों को ज्यादा घातक तरह से बीमार कर सकता है।
– इस रिसर्च से पुष्टि होती है कि आखिर क्यों ओमिक्रॉन वैरिएंट से संक्रमित लोग गंभीर रूप से बीमार होने के बजाय सिर्फ खांसी-जुकाम जैसे लक्षणों से गुजरते हैं।

हालांकि, इस पूरी स्टडी को लेकर हॉन्गकॉन्ग यूनिवर्सिटी के हेल्थ एक्सपर्ट डॉक्टर माइकल चैन ची-वाई ने कहा कि ओमिक्रॉन के बढ़ने की गति का सामने आना सिर्फ इसके खतरनाक होने का एक मानक है, हो सकता है कि लोग इस वायरस से संक्रमित होने के बाद किसी और वजह से भी गंभीर बीमार हो जाएं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि ओमिक्रॉन अपनी तेज गति की वजह से डेल्टा से भी घातक सिद्ध हो सकता है। दरअसल, अगर ओमिक्रॉन संक्रमित इसी तरह से बढ़ते रहे, तो किसी भी देश में हल्के गंभीर मरीजों की वजह से अस्पतालों के बेड्स का भरना जारी रहेगा और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का चरमराना शुरू हो जाएगा। इस स्थिति में सही इलाज न पाने वाले लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा लगातार बढ़ता जाएगा।

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