फिर जुटेंगे 24 दलों के विपक्षी दिग्गज, सोनिया गांधी भी होंगी शामिल….

लोकसभा चुनाव 2024 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से उखाड़ फेंकने के मकसद से विपक्षी पार्टियां एकजुट हो रही हैं. हालांकि, एक दिखने के बीच कई ऐसी पार्टियां भी हैं जो विपक्षी एकता की कवायद को नुकसान पहुंचा सकती हैं. हाल के दिनों ने इन पार्टियों ने अपनी बातों से स्पष्ट भी किया है कि अगर उनकी नहीं सुनी गई तो विपक्षी एकता दूर की कौड़ी साबित होगी.

तमाम नाराजगी और बयानबाजी के बावजूद एक बार फिर विपक्षी एकजुटता की कवायद के तहत बेंगलुरु में 17 और 18 जुलाई को विपक्षी दल जुटने वाले हैं. इस बैठक में 24 विपक्षी पार्टियों के शामिल होने की संभावना जताई गई है. इससे पहले बिहार की राजधानी पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की अगुवाई में भी विपक्षी पार्टियों का मिलन हुआ था.

विपक्षी एकजुटता की कवायद के तहत पहली बैठक 23 जून को पटना में हुई बैठक में 15 राजनीतिक दल शामिल हुए थे. राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी पारिवारिक कार्यक्रम के चलते इस बैठक में शामिल नहीं हो सके थे.

सोनिया गांधी भी होंगी शामिल!
कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी भी 17 जुलाई को विपक्षी नेताओं के लिए आयोजित रात्रिभोज में शामिल हो सकती हैं. सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में एमडीएमके, केडीएमके, वीसीके, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी), फॉरवर्ड ब्लॉक, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल),  और केरल कांग्रेस (मणि) भी शामिल हो सकते हैं.

विपक्ष की बैठक में आम आदमी पार्टी को भी आमंत्रित किया गया है. कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने सोमवार को उम्मीद जतायी थी कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी 17 और 18 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दलों की अगली बैठक में भाग लेंगी.

कौन से दल हैं नाराज?
दिल्ली की आम आदमी पार्टी के नेता और पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल साफ कर चुके हैं कि अगर कांग्रेस केंद्र द्वारा जारी अध्यादेश के मामले पर साथ नहीं देती है तो वो विपक्षी एकजुटता का हिस्सा नहीं होंगे और न ही वो कांग्रेस के किसी भी बात का समर्थन करेंगे.

उन्होंने कहा है कि मानसून सत्र में कांग्रेस को अध्यादेश पर आम आदमी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान करना चाहिए. हालांकि, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इनकार किया है और कहा कि अध्यादेश का मुद्दा संसद में आने पर विचार किया जाएगा.

इधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी प्रदेश में पंचायत चुनावों के दौरान लेफ्ट और कांग्रेस के खिलाफ जमकर जहर उगला था. उस दौरान उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि ऐसा बिलकुल भी नहीं हो सकता कि केंद्र में कांग्रेस हमारा समर्थन प्राप्त करे और राज्य में हमारे खिलाफ लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़े. ये बर्दास्त नहीं किया जाएगा. ऐसे में विपक्षी एकता की गाड़ी को केजरीवाल और ममता बनर्जी कहीं पटरी से न उतार दें, इसकी संभावना बनी हुई है.

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